Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 219
________________ सिरि भुवलय सर्वार्थ सिसि संघ मेंगलोर-दिल्ली सर र तिरेयोळगिरव समसत वसतु' । सरि पेळवलरहन्त' नवरदावर'रादियाददंदुपरमेष्ठिगळखोल्लिापरियपदधतियोळ विरचिा२१३॥ * तिशय सिहरबलतिदति (४१)नया यादिल । क्षतिबरणग्रन्थव अनोळमोन । डुति'प्राय हन्नेरडु म' साविरद । हित शरेयो मार्ग श लोकगळिम्॥२१॥ तर निया'द कहिद रेय ऐवरकाव्य' । बम वय ४२) पारेष्ट ज म पागणसि विसिदरष्टुसत्फलवोव सा। र'न'सर्वस्ववी ऐटु' २१॥ तक बगे सेरिदरहवसिद्धराचार्यपाठक' धवरु'साररुस आ साधु अवरु गळर'(४३)सुतप्पदेभूवलयकमादि'वयद मंगल विपतनालवर्'२१६ दुवसिर् 'ममन्तर प्रोप्पुब' दु ॥२१॥ रवतु 'पचकार' वरिया ॥२१॥ व 'सि पाउ सा मन्त्र ॥२१॥ यवे 'विप्प साल कक्षर काव्य' ॥२२॥ एब मा (४४)साविरदेन्दु' ॥२२१॥ रुव 'नामगळनु कूड ॥२२२॥ अावा 'लु पावनबाद' ॥२२३॥ नव 'मोस्बत्तु सावाग' ॥३२४॥ नेवदे 'जीवर कावुदेन्नु' ॥२२॥ यु 'व काव्य श्री वीर पळद' २२६॥ सोबरट्ट भूवलमम' (४५) ग ॥२२७॥ टुब 'घरे योळी अोमवतु ॥२२॥ ऐवह 'गळ विस्तरिस' ॥२२॥ लायाग 'लु बरुवनक' ॥२३०॥ नववु 'नूर हनतेरउ परि' ॥२३॥ कवि 'शुद्ध बद्र मत्ते कूड' ॥२३२॥ मनिर'लु नाल् कु बरधर्म ॥२३३॥ तव'शास्तबिम्परि'(४६) ॥२३४॥ लब नालक होसेयलु नपर्दे' ॥२३५॥ नवतेय होस शास्तरविदतन् ॥२३६॥ नूवन् 'दु कोट्ट भूवलय' ॥२३७॥ काब 'द होस पद्धतिगे' ॥२३॥ डुबिन्'रगुवेति [४७ हर्षवर्ध' ॥२३॥ रविवार 'नमप्प काग्य ॥२४॥ बोववतु 'मोमबत्ताह' नळ ॥२४१॥ ळवर स्पर्शदोळोदेरड्एमब' ॥२४२॥ गेवि'स्पर्शमरिणगळयबोदोम् ।।२४३॥ मव 'बत् अन्क के हरुष' ॥२४४॥ रव'दोळे गुवेनिन्दुम् (४८)नास ॥२४५॥ विगळन्कद भरी भूवलय ॥४४६।। स पार्थ सिद्धियोळ हमी वर देवरु । निहिसुतलिह हे म* मे ॥ धर्मवयमवदतिशयददीर्घायुवु। निर्मल भक्तरिगहदु ।२४७। प्र वरोळ गरसु आळगळेम्ब भेदवम् । कविमळु कापबुदशक य* अ॥ अवरनतेकरमाटवेशभाषेयजन । दघरेललशाश्षद सुखचि ।२४८। यशकीरतियल्लद यशकीर्ति नामद । हेसरिन कोद अय् अ व वशगेयवजनपदविल्लवीनाडिनोळाकुसुमायुधनाळ नेलदोळ् ।२४।। सि* रबोळु परिसिर्द मकुटदोळ केत्तिर्द । वररत्नयुति ह* रिसि ॥ गुरुविनचरणधू लियहोत्तमोधात्क । दोरेय राज्यद'ळ'भूवलया२५० द* रियन्तर नाल्केन्टोम्बत् ऐदोमदु । सरियन्कदक्षर् प्र इळ से ॥ गुरुवेळ एळ नालकोमबतड इन्तागे । कहनाडजनतेय काव्य ॥२५॥ घा रिणियोळ हदिभूरनेअन्क ळ'। सेरिसेनमालवत एन्ट् अम् । शूर दिगम्बररक्षमषद ( प र्षद) (नन्त भूवलय 'ळ' ॥२५२।। ६,४७७+अन्तर १५,६८४+अन्तरान्तर २१६६ = २,२६३० अथवा प्र-ऋ-२,५२,०८१+ळ २७,६३० = २,७६,७११

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