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सिरि भुवझाय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बेलोर-दिली इस भूवलय सिद्धान्त ग्रन्थ में रहनेवाले अतिशयों का कयन वर्णनातीत : साकार रूपी अतिशय अङ्ग ज्ञान है।१६८ । है ।१५८।
यह अंग ज्ञान अथवा शब्दागम आकार रहित होने पर भी साकार यह थी जिनेन्द्रदेव के उपदेश का अंक है ११५६।
है।१६। यह अंक विश्व के किनारे लिखित चित्र रूप है अर्थात् सिद्ध भगवान । जो साकार है वही निराकार है ।१७०। का स्वरूप दिखलाने वाला है ।१६०१
इन अंकों को लाने के लिए एक, द्वि, त्रि चतुर भंगकरना चाहिए ।१७१ यह थी बाहुबली भगवान के द्वारा बिहार किया गया ग्रंक क्षेत्र। इसी प्रकार पांच व छः का भी भंग करना चाहिए।१७२। है ।१६१॥
प्रयत्नों द्वारा सात व आठ भङ्ग करना चाहिए।१७३। इसलिए यह भूवलय काव्य विश्व काव्य है ।१६२१
इसी प्रकार उपयुक्त भंगों में से यदि अन्तिम का दो निकाल दिया ऊपर द्वितीय अध्याय में जो अंक लिखे गये हैं उन अंकों से समस्त । जाय तो ७१८ भाषायें आ जाती हैं 1१७४। कर्मों की गणना नहीं हो सकती । उन समस्त क्मों को यदि गणना करनी हो । "ओ" और "अ" इन दो अक्षरों को निकाल देना चाहिए ।१७५३ तो १०००००००००००००० सागरोपम गरिणत से गिनती करनी होगी या
संसार की समस्त भाषायें आ जाती हैं ।१७६। इससे भी बढ़कर होगी। इन कर्मो को गणना करनेवाले शास्त्र को कर्म । श्री कार द्विसंयोग में गर्भित है ।१७७। सिद्धांत कहते हैं। यह सिद्धांत भूवलय के द्रव्य प्रमाणानुग में विस्तृत रूप से यहां से यदि आगे बढ़े तो ३ अक्षरों का भंग आता है ।१७८) मिलता है। वहां पर महांक की गणना करनेवाली विधि को देख लेना ।१६३॥ श्राकार का ६ भंग है। उन भंगों को ४ भंग में मिलाना चाहिए। अन्य ग्रन्थों में जो डमरू बजाने मात्र से शब्द ब्रह्म को उत्पत्ति बतलाई
१७६-१८०१ गई है, वह गलत है। क्योंकि उमरू जड़ है और जड़ से उत्पन्न हुमा शब्द ब्रह्म आगे १६ भंग लेना ।१८१॥ नहीं हो सकता । इतना ही नहीं उसमें गणित भी नहीं है और जब गणित नहीं और ५ अक्षरों का भंग आता है ।१८२१ है तब गिनती प्रामाणिक नहीं हो सकती यहां पर प्रमारए शब्द का अर्थ प्रकर्ष
पुनः २५ अंग आ जाता है ।१८३। मारण लिया गया है। शुद्ध जीव द्रव्य से पाया हुया शब्द ही निर्मल शब्दागम उपयुक्त समस्त प्रक्षरों को माला रूप में बनाना १८॥ बन जाता है। और वही भूबलय है ।१६४।।
तत्पश्चात् ७२ पा जाता है।१८॥ वर्तमान काल, व्यतीत अनादिकाल तथा आनेवाले अनन्त काल इन तीनों और ५ अक्षरों का भङ्ग निकलकर पा जाता है ।१८६। को सद्गुरुयों ने मंगल प्राभृत नामक भूबलय में कहा है। इसलिए यह भूवलय तदनन्तर १२० अंम आ जाता है ।१८७। काव्य राग और विराग दोनों को बतलानेवाला सग्रन्थ है ।१६५।।
और ८ अक्षरों का भंग बन जाता है ।१८८१ मो एक अक्षर है और बिन्दी एक अङ्घ है । इन दोनों को परस्पर में तब ७२० अङ्कमा जाता है ।१८६। मिला देते से समस्त सूवलय 'भों के अन्दर पा जाता है। इसका आकार शब्द, इसमें से यदि २ निकाल दें तो ७१८ भाषाओं का भूवलय ग्रन्थ प्रकट साम्राज्य है। इसलिए यह धोकर, सुखकर तथा समस्त संसार के लिए मंगल हो जाता है 1१६० कारी है ।१६६॥
वह इस प्रकार है:- इस अङ्क को भंग करते आने से सारी व्याकुलता नष्ट हो जाती है ।१६७। १४२४३४४४५४६-७२०-२७१।