Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 181
________________ सिरि भूषलय सप सिद्धि संप बैंगलौर-दिल्ली जो महापुरुष समुद्र के समान गम्भीर रहते हैं उन्हीं महात्माओं की कृपा से इस संसार में काले लोहे को विज्ञशा अथवा विद्या के बल से सोना असमान द्रव्यागम पाहुड ग्रन्थ कुसुम- वर्णाक्षर माला से विरचित है। बनाया जा सकता है; पर इस भूवलय में उस स्वर्ण को धवल वर्ण बना सकते ___ इस गणित शास्त्र से १२ अंग शास्त्र को निकालकर रामचन्द्र के है ।११॥ काल से नील और महानील नामक ऋषि ने इस भूवलय नामक ग्रन्थ को रचना ! यह तन, मन बचन शुद्ध धन है ।११३। की तो उसो पति के प्रमाथी महावीर सावान् को वाणी के प्रवाह यह समस्त संसार के द्वारा पूजनीय लौकिक गणित है ।११४॥ से इस भूवलय शास्त्र का गणित उपलब्ध हुया IEI यह भगवान जिनेश्वर के केवल ज्ञान से निकला हुया भूवलय है ।११५॥ लक्ष्मण पर्द्धचक्रो थे। उनके द्वारा छोड़ा गया वारा बड़े वेग से जाता यह संतप्त स्वर्ण के समान चमकनेवाला है ।११६! था। उस वेग की तीव्रतर गति को भाव से गुणा करके आये हुए गुणनफल के चने के बराबर सुमेरु पर्वत है ।११७।। साथ मिला हपा यह भूवलय काव्य का गणित है । इसलिए इसकानाम अनुबन्ध अत्यन्त तेजस्वी किरणों से दीप्तिमान यह दिव्याङ्ग है ।११। काव्य भी है ।१०। मलिनता से रहित परम निर्मल यह गणित शास्त्र है।११९॥ मन्मय का शरीर अनुपम था । संस्थान और संहननबन्ध भी उत्तम यह गुण स्थान के अनुभव द्वारा आया हुमा गरिणत है 1१२०॥ था तथा नवकार मन्त्र के समान वह पूर्णता को प्राप्त कर लिया था। इन यह भगवान् जिनेन्द्र देव का प्रयोगरूप गरिणत है ।१२१५ सबका और सिद्ध परमेष्ठी के आठ मुख्य गुस्सा रूप अतिशय सम्पदा की गणना यह भूबलय शास्त्र समस्त जीवों के लिए सन्मति रूप है ।१२२॥ करते हुए लिखित काव्य होने से इसे सुन्दर काव्य भी कहते हैं ।१०१॥ गति, जाति प्रादि १४ मार्गणा स्थान अनुभव करने के योग में एकेन्द्रिश्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र देव का शरीर धवल वर्ण होने से यह भूवलय। बादि १४ जीव सभासों का ज्ञान पैदा होता है और ज्ञान के पैदा होने के समय ग्रन्थ भी धवल है। अथवा इस भूवलय ग्रन्थ से घबल ग्रन्थ भी निकलता है इस में काल गणना रूप ज्ञान आवश्यक है । वह इस प्रकार है कि जैसे एक वर्ष में अपेक्षा से भी यह धवल है ।१०। 1१२ माह होते हैं, १ माह में ३० दिन होते हैं, १ दिन में २४ घंटे होते हैं, १ घंटे मुनि सुग्रत जिनेन्द्र के समय में पद्मपुराण प्रचलित हुआ इसलिये यह । में ६० मिनट होते हैं और १ मिनट में ६० सैकण्ड होते हैं उसी प्रकार सर्वज्ञ भूवलय ग्रन्थ पद्मपुराण कहलाता है ।१०३। देव ने जैसा देखा है वैसे ही काल के सर्व जघन्य अंश तक अभिन्न रूप से चले तीनों काल में ७२ जिनेन्द्र देव, अनेक केवली भगवान् तथा तीन कम । जाने पर सबसे छोटा काल मिल जाता है। ऐसे काल को एक समय कहते है। ६ करोड़ पाचार्य होते हैं । उन सबका माला रूप कथन इस प्रथमानुयोग में, जिम प्रकार १ वर्ष का काल ऊपर बतलाया गया है उसी प्रकार उत्सपिणी और है और वह प्रथमानुयोग इसी भूवलय में गभित है ।१०४१ अवसर्पिणी दोनों को समय रूप से बना लेना चाहिये। इतने महान् अंक में रत्नत्रयात्मक धर्म शुद्ध धवल है। गणित शास्त्र से ही जिन माला और सबसे छोटे एक समये को यदि मिला लिया जाय तो उसमें अनन्ताय मिल जाता मुनिमाला दोनों को ग्रहण कर सकते हैं। गणित से ही अक्षर ब्रह्म का स्वरूप । है ।१२३।। निकलता है और यह गणित कठिन न होकर अनुभव गोचर है । यह धवल रूप . छिपे हुए अंक को प्रकट करते समय, स्थापित करते समय, परस्पर में, जिन धर्म वृद्धिंगत बस्तु है । इस ग्रन्थ के अध्ययन से प्रात्मध्यान की सिद्धि मिलाते समय तथा प्रवाहित होते समय पुद्गल द्रव्य सहज में आकर काल प्राप्त होती है । एकान्त हठको दुर्नय कहते हैं। उस दुर्नयको दूर करके अनेकान्त । द्रब्य को पकड़ लेता है । उस प्रदेश में माते जाते और खड़े होते हुये अनन्त साम्राज्य को लाने वाला यह ग्रन्थ है ।१०५ से १११ तक । जीव राशि का भंक मिल जाता है ।१२४॥

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