Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ . . . कार्य सिद्धि संघ बैगलोर-दिल्ली सिरिअधलय - यह बुद्धि के द्वारा उपलब्ध अंक है ।१६। यह साकल्य भंग का अन्त है।१२। यह सिद्धांत सागर का अंग है ।१६२। साकल्य मिलाने से सब है ।१८३॥ 'यह सिद्ध भगवान को दिलानेवाला भंग है।१६३१ यह पराकष्ट का भंग है । १८४ यह शुद्ध गुणाकार का अंग है ।१६४। अन्त में सभी मिलकर यह द्रव्यागम है ।१८। यह ऋद्धि को दिखानेवाला भंग है ।१६५] यह साफल्य भंग का मध्य है ।१८६। यंह सिद्धं संसिद्ध भंग है ।१६६। यह साकल्य मिलने पर भी भव्य है ।१८७। यह बुद्धि को प्रकट करनेवाला अनुभंग है ।१६७। यह पराकष्ट परब्रह्म भद्र है [१८ .... 'यह ऋद्धि को प्रकट करनेवाला अनुभंग है ।१६८५ यह आकार से द्रव्य भावं है । १८६। यह सिद्धत्व प्राप्त करने के लिए आदि भंग है १६६। यह साफल्य ही ६४ है । १६०। इसको संपूर्ण मिटाने से सिद्ध भगवान का अंग रूप है । १७०। यह साकल्य ही गब्दागम का ।१६१ यह शुद्ध साहित्य नामक भूवलय है ।१७१॥ पराकष्ठ परब्रह्म तन्य है ।१९। वश किये हुए कर्माटक के पाठ रसभंगों के सम्पर्श प्रक्षर रस भाव।। यह.माकल्यांक चक्र का आदि हैं ।१९३ : . को मिलाने से प्राप्त यह ७१८ (सात सौ पठारह) भाषा है ।१७२१ . अत्यन्त सुन्दर रमणीय आदि के भंग संयोग अमल के १ अक्षर को। यह साकल्य कर्म से हारी। १९४॥ क्रमशः यदि ७ से गुणा करते जायें तो ६४ विमलांकों को उत्पत्ति होती है, यह सकलागम द्रव्य रूप है।१६५. . ऐसा समझना चाहिए ।१७३। पह. एकांक सिद्ध भूवलय है । १६६। श्री सिद्ध को लिखकर उसमें अरहन्न अ को श्री अशरीर सिद्ध भगवान प्रादि निज शब्द एक ओ३म्कार की विजय रूप है इस विजय को प्राप्त न और पाइरिया के पहले का अइन तीनों के पास, आ को पृथक पृथक किया परब्रह्म के समान अपने को मानकर अपने अन्दर ही अाराधन करनेवाले लिखकर एक में मिलाने से ग्रा होता है। यह श्रेष्ठ धर्माचरण के प्रादि से योगीअन्य अपने को बसुना २७ स्वरों में 'यो अनि से अन्य शेष पांच प्रकार मा पाता है। पुनः आगे उवज्झाया के आदि में उ पाता है। और अन्तिम के उ अन्य रसलट को आवश्यकता क्या है क्योंकि वह जो एक प्रकार है.मधी साधु मुनि के श्रीकार के आदि में मु और मू से म आता है । इन सभी को एक है और उसी का अंक अर्थात् जो पंच परमेष्ठी है वह भी उसी का रूप है परस्सर में मिलाने से प्रोम् वन जाता है । यहो ओंकार समस्त प्राणी मात्र ! और उसी का नाम प्रोम है जोकि एक अक्षर है । और प्रोम अक्षराही बस को सुख देनेवाला मन्त्र है। १७४-१७५-१७६। विश्व में सम्पूर्ण प्राणियों को इष्ट को प्राप्त कराने वाला है ।१९७-१९८। ,, यह कलंक रहित जीव शब्द है ।१७ - समस्तवादियों को पराजित करके भगवान की दिव्यबाणी केला ... यह साकल्य भंग का मूल है ।१७८ मर्म जाननेवाने सम्यग्ज्ञान के साधन यह ६४ चौसठ अंक हैं ।१९६- MEE यह साकल्य का संयोग होते ही एक है ।१७६। :: . . बंब अंक नौ रूप को कहनेवाला नवपद मक्ति की विजय पृथ्वी तलमें यह पराकाष्ठ परब्रह्म का अंक है ।१८० प्राप्त होने से ६४ अंक इस सम्पूर्ण पृथ्वी में एक है १२०० • यह उस प्रकलंक जीव का तत्त्व है।१८१॥ अभेद दृष्टि से देखा जाय तो अंक का प्रक्षर एक है सम भेकको प्रसन

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258