Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 199
________________ सिरि भूषलय सर्वार्थ सिद्धि] संघ गौर-दिल्ली ॥ •for लिम्ब 'सुविशालवह तावरेय मे । ट्ट्टे ळियुत बरत लिई * श्रद।। वलिय् 'उतवन्दवरंक वादियकमला' [५]ळेवाग' मरिणस्व रजत ' ॥ ५३ ॥ ममद 'पारद गंधकादिय क्षरण' निर्मल 'दोळु भस्म' वेद अॐ छ | धर्म 'यागिस्य' नूक 'गरगनेय हविना' धर्मा'युर्वेद विद्येगे,म' ॥५४॥ * 'रिपनव जलजब पंख' [६] म 'चित्तबोळेसे' दन'व सम्पू'द र सदा गुराद 'क्षरांकद श्रोतुगळोडने कू । डि' नचन्दर सुव' चित्र विये ।। ५५ ।। एनलु 'परम जिन समय' ॥ ५६ ॥ गरण 'वाधिवर्धनरवरु ॥ ५७॥ इन 'तर पिन सुधाकरम्' ।। ५८ ।। ट्रा 'प्रतिक्रमण शास्त्राद्यर्' ॥५६॥ प्रासदिरुष 'परीक्षितरु' ॥ ६०॥ उगवण' मतिज्ञान धररुम् ॥६१॥ दुरि से श्रारु मूर्डंगळम् ||६२|| सइनल इष्टार्थवरि ॥६३॥ मनद पा अक्षररुम् ॥६४॥ अणु 'पद समघात धररुम्' || ६५|| इणु 'प्रतिपत्यनाग धररुम् ॥ ६६ मुनद् 'अनुयोग श्रुतान्यर्' ॥६७॥ ओणि 'प्राभृतक प्राभृतकर्' || ६८ || ळूगरलु 'प्रावृतकांगर' ॥६६॥ आणिज 'वस्तु हत्तन्क पूर्वर्' ॥७०॥ ळ्या 'दश चोद्दश पूर्वर्' ॥ ७१ ॥ अनुयोग 'जीव समासर्' ॥ ७२ ॥ गुण 'समासवु हन्तिप्पत्तु' ॥७३॥ नराव 'आचार सूत्ररूतर् ॥७४॥ अणि 'स्थान समवायवररु' ।। ७५ ।। गुरणव 'व्याख्याप्रज्ञप्तर' ॥७६॥ उनद 'ज्ञात्रुकथा रूपर ॥७७॥ गुन 'उपासकाध्ययनांगर ॥७८॥ अणु श्रन्तद्दशधररुम् ॥७६॥ ट्न 'अनुत्तरोपपाद दशर् ||८०|| ष्ण ‘प्रश्न व्याकरण किग ' ॥ ८१ ॥ ऋणु महा 'विपाक सूत्रांग ॥ ८२ ॥ भाग्यवस 'य स्वस्तिक वाहनवेरि' । नोग 'दुत्तम पोरेघु' ।। सागलदेम्यम् [७]ण व पददंक वृद्धि' । नाग'यमहोदुब' सुविशा' ॥ ८३॥ * शदे 'लवहतम्बेळग चउतियचम्' । देसेविन् 'इनकिरणद् इ होस 'बेलळदु' प्रवहिपकाव्ययेन्न' य । जस [८] हरुषदोळे रडु' गळ ।। ६४ ।। * नम्र प्राणिगळोम् दागिये तेरदळु । घन करिमकरियदु तु तु* अ । जनर् 'ओरेय द्विधारेय स्याद्वादद' घनवाद' स्तरव परिय' ॥ ८५ ॥ * रिसि 'भाविसलद् भुतबल [8] मणिरत्नावर मालेबाहारादिय् अ ल । सर 'गळनी व रु'गरिणतद हत्तु 'सिरि'पृक्षगळु कषरणदोळुगे ॥ ८६ ॥ * यु 'कल्पदिन्बय् तन्' द' दोम्दादन्ते' सवि 'जिन रासन वद * ।। अव वृक्षकल्प' (१०) गळगळु गोचर सवि' बूत्तियोळा हाहारवनुस्' ॥६७॥ नव प्रथमानुयोग धर' ॥६०॥ अवरोळ 'पूर्वगतदलि' ॥६३॥ भव' प्रस्तिनास्ति ( प्रवाद) पूर्ववरु अविरल ग्रात्म प्रवाद' श्राव 'विद्यानुवाद पूर्वर्' राव "क्रिया विशालवर हव 'हत्तु हृदिनाकु एन्दु अयु 'मृवत् हदिनय्डु हत्तु श्रवरङग 'वस्तु भूवलयर' ॥६६॥ HESHI ॥६६॥ श्रवरु 'हन्नोम्दन्गु धररु ॥८८॥ इg 'पूर्वगत ळिगळु ॥ ६१ ॥ बुबु 'उत्पाद प्रशियद' ॥६४॥ युवेय 'ज्ञानप्रवादर ॥६७॥ य्वरु 'कर्म' प्रवाद धरर् ॥१००॥ ह य कल्याण वाददवर् ॥१०३॥ व 'लोकबिन्दुसार घवर् ॥१०६ ॥ श्रवु 'हदिनेन्दु हन्नेर' ॥१०६॥ व 'परिकर्म सूत्ररवरु 115811 दु 'दृष्टिवादनय्गळु ॥ ६२ ॥ अवर 'वोर्यानुवाद दलि' ।। ६५|| वचर सत्य प्रवादववु नव प्रत्याख्यान पूरम् ॥ १०१ ॥ तिविये 'प्राणावाय पूर्वे ॥ १०४॥ श्रावेल्ल 'हदिनात्कु पर्वर् ॥ १०७ ॥ मृदु हन्नेरड् हृदिनार् इप्पत्तु ॥ ११०॥ पवि 'अना विश्व वस्तुगळ ॥११३॥ तु आइन् इ नहु'।। सबदु व मुनिगंडभेरुण्ड'ई'। नव 'चिह्न स्याद्वादवत्प'(११)आ।.१.१५ १७५ im 'हवतु हत्तु हत्तुगळु' ॥ ११२ ॥ सु* श्रवणनुन् 'डु श्री चर्येबोळात्मन' । विवरद ॥१०२॥ ॥ १०५ ॥ ॥ १०८ ॥ ।।१११|| ॥११४॥

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