Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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पराकट परब्रह्म दनग ॥१८॥ प्राकलन कर जीव तत्व ॥१८१॥ साकल्य भंगद अंत ॥१८२॥ साकल्यव कूडे सर्व ॥१८३॥ प्राकटः परब्रह्म भंग ॥१८४॥ पाकर द्रध्यागमवु ॥१८॥ साकल्य भंगद मध्य ॥१८६॥ साकलयब कूडे मध्य ॥१८७।। प्राकट परब्रह्म भद्र ॥१८॥ प्राकरघा रव्य भावा ।। १८६॥ साकल्य अरयत्नाल्कु ॥१०॥ साकल्य शब्दागमद १६१।। पराकट परब्रह्म तत्व ॥१६२॥ साकल्यानकद कक मोत्त ॥१६॥ शाफट कर्म सम्हारि ।।१६४॥
साकलागम द्रव्य रूप ।।१६।। एकान्क सिद्ध भूवलय ॥१६॥ रिण* ज शब्दवादिय ओम्कार अोमवनु । विजय धवलवन्यागिसि जी* ॥विजयव होन्दिद परब्रह्म विन्तागे भजिय योगिगळनद बेरे ॥१९७॥
* शवाद् इप्पत् एळ स्वरदोलु 'ओ' बरे। हुसिय ऐदक्षर व* शद। रसकूटवेतके प्रो प्रोम्दु एननदे। ऋषिपळनकवेग्रो प्रोम्दंक ॥१९॥ वा* दिगळेल्लर वाददिमतागे। श्री दिव्यवारिणय मर्म।। दादिय म भेदिसि तिढ़िव सम्यग्ज्ञान साधनेय् अरवत्तारुक अन्क ॥१६॥ रण* बदनकवदतु ओमबतरनदु पेळुब । नव पद भक्तिय चि ज* य ।। दवनिय हतअलु अरवमाल्कन्का दबानयल्लनु प्रोम्दंक ॥२००।। ग* मनिसि नोडलन्द अक्षर प्रोम्दु । समदनक विडियागे ज य दे। क्रमद् ओमदु काटकद समन्वया अमम विस्मयद सामान्यः।२०१।। या वाग कर्म सामान्यव नोडेवेवो। पावाग एनटु रूपगि।। तावदु तुझ लियलु सम्स्यात । दा विश्वाननतान्क बहुदु ॥२०॥
दाविश्य घ्यापियागुबुदु ॥२०३॥ जीवर नन्तान्क गणित ॥२०४॥ सावु हुगळ अनन्त ॥२०॥ देवन अरिकेयनन्त ।।२०६॥ श्री वीरनरिकेय अन्क ॥२०७॥ जीवरनले सुव कर्म ॥२०॥ जीवराशिय काटकवु।।२०६॥ दा विश्व कर्मदनन्त ॥२१०॥ काववरारिल्लद अन्क ॥२१॥ जोवर नलेसुय अन्क ।।२१२॥ जोय राशिय गणितांक ॥२१३॥ पावन जोव घातांक ॥२१४॥ भावद कर्माक गरिणत ॥२१५॥ जोवर नलेसुब गरिणत ॥२१६॥ जीव जीवर गरिगतांक ।।२१७।। पाबन जीव ज्ञानांक ॥२१॥ तीवलक्षर अर्चनाल्कु ॥२१॥ तावल्लि प्रोम्दे प्रादनक ॥२२०॥
शो वीरवारिंग प्रोमबत्तु ॥२२१।। ई विश्व काव्य भूवलय ॥२२२॥ ण षपद भक्तिये अणुवतकादियु । अवरु श्री जिनवीक्षे बहि श* ए । नवदंक एंटरिम एलरिम । सब भाग 'सोन्ने काणुवरु ॥२२३॥ मो* हदंकवरेष्टु रागदनकवदेष्टु । साहसि वेषांकद् प्राळा । मोहवेषवळिदाग प्रात्मन । रूहिद ज्ञानक्वेष्दु ॥२२४॥ ते रस गुणठारगरिद प्रात्मन । सारौक दर्शमदंक ।। भार सॐ गुरुठाए सार चतुर्दश । वेरिनन्तांक ( सन्ख्यात ) वेष्टु ॥२२॥ सिक ववागलात्मनेरिद सिद्धलोकद । अवतारदादिम जीव ।। प्रव न ष्ट गुणगळ (अवनष्टु ज्ञानद) व्याप्ति एष्टेम बन्क दवनु (अतिशय
धवल ) सिद्ध भूवलय ॥२२६॥ मनसिज हरगनवु हदिनालकु साविर मुन्दए। तनि मनहत् प्रोम * वन अंत ॥ (एदु साविरदहत् प्रोम) प्रोन्बत् प्रोमदु सोन्नेयु ए'दु।।
तनुवेल्ल ओमद् 'ऋ' भूवलय ॥२२७॥ ऋ८,०१६ अन्तर १,४३१६=२२,३३६
अथवा अ-ऋ.२,००,५६५+ऋ२२,३३८२,२२,६०३

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