Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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यारा दसवाँ अध्याय
ऋपिअरूपियागिहव द्रव्यागम । दापद्धतियोळगंक ॥ ताप ले नक्षर दोळगे कूडिसुवक । शरी पर बयबु भुवलय ॥१॥ प्रा दिय अतिशय मंगल पर्याय । तादियनकावर कूट ।। नाद म* अदे जीवनरि वेन्नुतिह ज्ञान । साधने यध्यात्म योग ॥२॥ म नदथियिन्द मगल पर्यायवनोदे । जिन धर्म तत्व * लेल्ल ।। तनगे ताने तन्न निजबनु तोरिप । घनविद्यासाधने योग ॥३॥ मु नर किन्नर ज्योतिष्क लोकद । घनव श्री जिन देवालयद् ॥ ल* रणधव्य श्री जिन बिम्ब करुत्रिमा कृत्रि । मेनेसान्क गणनेयोळदिदु ॥४॥ दो* षविनाशन शरीश श्री मन्दर । देशन दरुशन माडि ॥ राशिय म्* पुरणयव रूपिनिम् गळिसुव । ईशर भजिसे मन्मलवु ॥५॥
श्री शन पुण्य सद्ग्रन्थ ॥६॥ राशिय पाप विनाश ॥७॥ ईशनु पेळिद ग्रन्थ ॥८॥ राशिय पुण्यद गरिणत ॥६॥ ईशन भक्तिय गणित ॥१०॥ दोष अष्टादश गरिएत ॥११॥ श्री शन सद्धरम गरिगत ।।१२।। राशिय पुण्यद गरिणत॥१३॥ ईशन ज्ञानद गणित ॥१४॥ दोष अष्टादश गुणित ॥१५॥ श्रीशन सद्धर्म गुरिगत॥१६॥ राशिय पुण्यद ज्ञान ॥१७।। ईशन चारित्र मरिणत ॥१८॥ दोष अष्टादशादरित ।।१६।। श्रीशन सधर्म जान ॥२०॥ कोशद ज्ञान विज्ञान ॥२१॥ ईशन चारित्र सार ॥२२॥ दोष अष्टादश रहित ॥२३॥ श्रोशन सब्बरम गुरिणत॥२४॥ आशेय भव्यर भक्ति ॥२५॥
ईशरिप्पत् नाल्बरन्क।।२६।। कोषद काव्य भूवलय ॥२७॥ दो षगलियो केम् बाशेपिहरेल्ल । राशेयम् गुरुतिस्इ हरु स* ॥ देश ज्ञानव सम्पूर्ण वागिसि कोन्ड । देप्तिय भाषांक काव्य ॥२८॥
* यदनक वेनदेने अरहन्त रादियिम् । नव तीर्थगळन द र* शनदि ।। अवनिय पूजेगे विनयोगबेन्मुद । शिव पवदन्तवेदरिया ॥२६॥ रिण* जदहत् अन्कवे साधित भव्य । बिजयांक वेन्दरि अ व नु ॥ भजिसुत बरुवाग नवपद सिद्धिथु । विजय भादुवुदेन अरिदे ॥३०॥ जय सिद्धियाद हतन्क महावत । दयतदे बंद सन् मार्ग ।। दये दानवेल्लव निरदित्तु भजकर गे । नय प्रमाणवतु तोरुवुदु॥३॥ णा पद सामान्य प्रस्थारदकव । ज्ञान साम्राज्य ध्वज न* व ॥ श्री नेमिनाथांक वेन्दरि परमात्म । अनन्द कल्याण करणा ॥३२॥
ज्ञान बरभवकर काव्य ॥३३॥ श्रीनिवासन दित्य काव्य ॥३४॥ प्रानन्ददायक काव्य ॥३५॥ ऊनवळिद दिव्य काव्य ॥३६॥ कारिणय भद्र मन्गलवु॥३७॥ ताल्लि कारिगप मन्त्र ॥३८॥ ताने शुद्धोपयोगांक ॥३६॥ आनन्द साम्राज्य गरिंगत ॥४०॥ कारिणप शिव सख्यभर ॥४१॥ तानल्लि कारिणप तन्त्र।।४२।। जोरिण पाहुडदानि ग्रन्थ ॥४३॥ आनन्द साम्राज्य गुरिणत॥४४॥ कारिणप सूक्ष्म विन्यास ॥४५॥ ताम्लि काणिप मूति।।४६।। क्षोणियनलेव सत्कीति ॥४७॥ प्रानन्द साम्राज्य ज्ञान ॥४॥ वान दयामय ग्रनथ ॥४६॥ मानबरेल्लर कोर ति ॥५०॥ जैनागमद इरश नषु ॥५१॥ क्षोणि जणानद रूप ॥५२॥
ताने तानाद भूवलय ॥५३॥ लावण्य लिपियनव वेन्तेम्ब ब्राह्मिगे। देवनु नन्नय म ग ॥ नाविल्लि अक्षर ब्राझियोळ् पळवु । देवाधिदेव वारिणयणु॥५४॥ उस ण ठरण वेननुत येळलागुव माता जिनवाणि प्रोवरिम्परिय ल* ।। धनवाद अक्षरदादिय 'म'क्षर । कोनेगे 'प' अक्षर बरलु ॥५॥ स* वक गगनेय नवपद भक्तियिम् । सवियक्षरद अब य% ववम्।। सबरपर्गेअरवत् नाल्कनकदिम्पेढुवा नवम बंघांक बंदरिया॥५६।। रिश षिगळ भावदि बख्यात्म योगदोळ् । वंशवप्प सिरि सम्पद व म ॥वशमोन्डु भ्राहिये परवत् नाल्क अंकद । यशव होन्मुस पुलियाgmate

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