Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
View full book text
________________
सिरिमूवलय
घे
जयम्जन हररपद रूप सुविशाल दिव्यवय् भवतु ॥ ६०॥ गवसरिपगेयळिव बेह ॥ ६१ ॥ सविवचनाम् रुत शरधि नवपद भक्तिय शुद्धि ॥ ६३ ॥ नवपद भकूतिय सिद्धि ॥ ६४ ॥ नवपद ज्ञानद शक्ति ॥ ६५ ॥ नवदम्क सिद्धि चारित्र्य ॥ ६६॥ अवसर्पिणियादि रूपु ॥६७॥ अवसर्पिषिय भव्यानुक ||६८ || नवबेरडने भागदनुक ॥६६॥ भवहर सिद्ध भूवलय ॥७०॥ सुरतर्ह्रादमूर् अतिशय काव्यदे । सिरि जिन महिमेगळर षु तिरुवल्लिमोडलिगेसन्ख्यातयोजन। दिरुवचनगळ व रुक्षदोळ ॥७१॥ * रुशिसयल एलेयु हुनु हरणगळ् । बरुबुवसमयदोळा ना* परियतिशय श्रमदु मरमुळ्ळिल्लद । धरेपोळ चलिसुव पवन ॥ ७२ ॥ होक्कन्ते सुखदायक। एनेम्बे एरडनेय महा || ताना * तवायु परिवुदु सूरने । तानुययुरव बिट्टु जौवर् ॥१७३॥ रग व नवोदित दिव्य प्रेम दिद्विरुवरु नवरत्न केत्तिद * सेय ॥ सुविशाल दर्पणदन्ते होळेवनेल । दवनियु नालुकनेयनक ॥७४॥ ववनिय समवसरण ॥७५॥ कविगे नाल्कनेयतिशय ॥ ७६ ॥ नवरनुकरणने लेकट्टु ॥७७॥ दवनमोल्लेय चित्रदच्चु ॥७८॥ सवि गन्ध माधव हूव ॥७६॥ नवगन्ध माधव बळ ॥८०॥ सुविशाल चित्रवल्लियदु ॥८१॥ नव सम्पगे पडियच्चु ॥ ८२ ॥ नव गन्धराज बळिगळ ॥८३॥ अवयव कमल जातिगळ् ॥ ८४ ॥ गमखि वित्खच्छु ८५॥ काकतुरि झलि ॥ ८६ ॥ विविध चेनगरजिल बेला ॥८७॥ नवमालती मुडिवाळ ॥८८॥ नव पगडेय बधूक ॥८६॥ छवि ताळेयवतार चित्र ॥६०॥ भूविय पादरिय नामद हू ॥ ६१ ॥ दवनिय रेखेयन्तिदु ॥ ६२ ॥ दवनिय काव्य सूवलय १६३॥ * व सुगन्धव पत्नीरिन मळेयनु । अवनिगे सुरिसृत सवन ॥ सू* विजलवष्टिय देवेन्द्र नाग्नेथिस् । भुविगे सुरिव मेघकुवर ॥६४॥ म* यु ऐदागे देवरु विकरियेयिद । फल भानमुख शालि ।। ति ळियाद पयतु हरडुवुद प्रारग्रन्क । विविधजेवरनित्य सख्य ॥१५॥ मु* रेयवारद एक देवविक्रियेविन्द । सर तर पिन बुझाय शव प्रारनिगेबीसुवुनानक केरे भावि सिरिशुद्ध जलपूर्णनयम ६६ सि# डिलु कार्मो डउल्कापातविल्ल | विडियाद आकाशदशम ॥ वड ति यागिरे सर्व जीव रोगादि । भिडेयिल्लविहु हनुमुटु ॥६७॥ फडेगळ्ळि लद निरामयरु ॥ १०० ॥ गडिंगळाळदु बालुवर ॥ १०१ ॥ प्रोडवेगळळिवरु जनरु ।। १०४ ॥ कडवनु कळेदु कोळ्ळुवरु ॥ १०५ ॥ तोडरुगळळिवरु जनः || १०८|| तडेगळिल्लबे सखबिहरु ।। १०६ ॥ नडे मुडियलिबु बाळूवर ।। ११२|| पडिगळ बाधेयल्लि ॥११३॥ यडरळिविहरु नोडल ||११६ ॥ षडक्षरवलिन भूवलय ॥११७॥ व्* श्रम्भरिसिद्ध धर्म चक्रवुनाल्कु ॥ भ्रानन्ददिम् मक्षेन्द्ररुगळ ।। ११८ ॥ * चियदुहनएरड् अनुकतु तानु सुबत्एरळ् विशेयोळ् ॥ ११६॥ * रधि ॥ विरचितपादपोठवुदिनात्कवु । सरिपूजेदस्तु हुमेयु ॥ १२०॥
afar दाटिहरु हरपवलि ॥ ६८ ॥ जडतेयनळिदिहल्लि ॥६९॥ मुख बाधेयळिविहरेल्ल ।। १०२ ।। एडरुगळळिवरु एल्ल ॥ १०३ ॥ जडतेयनळिवु बाळुवरु ॥ १०६ || झडतय नळियदिहसूल ॥ १०७॥ सङगरयेनिल्लवलि ॥११०॥ कुडुकेगळलिदिहरळ लि ॥ १११ ॥ बढत नवे निळ्ळवल ॥ ११४॥ मडिगळिळ लदे बालुवरु ॥ ११५ ॥ ॐ* नवळिव तेजवतिशय रत्न । काणुव बेळकिनुज्वलक्ष | तारण स्पा* रणाविधवलनकारव धरिसिह । जानपदब तेरदिन्द ॥ प्रानद * रविद एळेळ, पन्वतिये हृदिमूह । बरे स्वर्ण कमलव मु* न पावपीठ पूजाद्रव्य एरळ् पोगे जिनर मृवत्नात्कु शु
भ
द । घनवादतिशयगळनेल्ल पेळ व । विनयावतारि मानिह ॥ १२१ ॥ सनुनय वादियारिहनु ॥ १२४ ॥ जिन मार्गलक्षण धर्म ॥ १२५ ॥
जन भूतलदोळगिल्ल ॥१२२॥ जनर भूतलदोळेल्लिहरू ॥ १२३॥
१३१
॥५६॥
||६२ ॥
म सिद्धि संघ बेंगलोर-दिल्ली

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258