Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 174
________________ मा मनि सलिन्तु ई सर्वविषयगळ । करम मार्ग गणितदेसर मं* विमल विहारदे प्र चरिसुव मुनिगळ गमकदतुल कलेयन्क ॥६६॥ व* शवागदेल्लरिग ई कालदोळगेम्ब । अस्दश ज्ञानद् साम ग तय । विषहर 'सर्व भाषाम ई करमाट । बसमान दिव्य सूत्रार्थ ॥७॥ य* वेय काळिन क्षेत्रदळतेयोळ जोविप। सविवरानन्त जीध ल* क् ॥ सुविस्पात काट देशप्रदेश । सविवर कर्नाटकबु ॥७॥ ग* गित शास्त्र बदेल्ल मुगिदरु मिक्कुव । गरिपतव नणु, म गेषु । जलवे सनवानदासम त्यातद । गुणितदेकेडिसुवक्रमवु।७२। व र विश्वकाव्यदोळडगिर्प कारण। सरणियन रितब शु भर द॥ गुरुवर वोरसेनर शिष्य कुमुदेन्दु । गुरु विरचितदादि काव्य ॥७३॥ * दक्षयवेन्तो अन्तु बन्दक्षर । निर्वाहदोळनग गळ ।। सर्वब अनुलोम् प्रतिलोम हारद । सर्वांक मंगल विषय ।।७४॥ खो* डिकर्मबगेल्व हाडनुम् हा डद । रूढियम् हळेय कम्नङ वाक | गाढ प्रगाड समरूढियज्ञानद । कूड यतिशय बत्र ॥७॥ हाडलु सुलभवादनग ॥७॥ नोडलु मेच्चुव गणित 15७॥ जोडियन कद कूटदद्ग ॥७॥ कुडुच पुण्यानुग भंग ॥७॥ कूडुवागले बंद लब्ध ॥५०॥ गूढ रहस्यद अंग ॥१॥ मूढ प्रउदरिग प्रोम्दे भंग ॥८२॥ गाढ रहस्य कर्माग।।८३॥ मोडि बरलु पुण्यदंग ।।१४॥ बारे ढिय कळेव भानांग ॥५॥ गाढ श्री गुणकार भंग ।।८६।। माडिद पूजान्ग भंग ॥७॥ रूढियिम् बंद पुण्यान्ग ॥८८।। प्रौडिनोल हाडुब अन्ग ॥८६॥ काडिन तपदे बन्दनग ॥१०॥ तौडिनोळ गणिपन्तरग॥६॥ ताडनवळिव दिव्यानग 11६२॥ माडिद पुण्याग गरिएत ॥६॥ रूढियागमद सूक्ष्मानग ॥४॥ याडिल्लदणु महा भंग ॥५॥ गाढ भक्तिय भव्य रन्ग ॥६६॥ कूलिंद भव्य भूवलय ॥७॥ य* शकीरति नाम करमोदयवळिदस । यशद दिध्यात्म निम्ब न द ॥ असमान द्रव्यागमद पाहडदनग । कुसुम वर्णाक्षर माले | पी लमहानोलनामद ऋविगळ। सालिनिम्धन दिहरिणत।। बोलेय वो र जिनेन्द्रन वाणिय । सालिनिम् बंदिह गरिणत En ल* क्षमएनर्ध चक्रीश्वर नवनग । लकमान्कदक्ष रोश चनवा। लक्षमवभादिगुणिसुतगरिणसिहा लक्षयांक दनुबंधकाव्य ॥१०॥ म् नुमथन नुपमदेह सम्स्थानद । घन बन्ध समहननव मंतनवकारद सिद्धरतिशय सम्पद । देरणेकेय सौन्दर काव्य ॥११॥ जिन चन्द्रप्रभरनग धवल ।।१०२१ मुनिसुदरतरन्क कमल | १०|| जिन मुनिमालेय कमल ॥१०४॥ धनरत्नत्रय दिव्य धवल ॥१०॥ जिन माले मुनिमालेयन्क ।।१०६॥ गणित दोळकपर ब्रह्म ॥१०॥ अनुभव गोचर गरिणत ॥१०८॥ जिनमतवर्धन धवल ॥१०॥ तनगे प्रात्मध्यान धवल ॥११०। कुनय विधूर साम्राज्य 11१११३ कनकव धवलगेयवनक ।।११२।। तनुमन वचन शुद्ध धन ॥११॥ विनुतद लौकिक गणित ॥११४॥ जिनर केवल ज्ञान गणित।।११५॥ थणथणवेने श्वेतस्वर्ण ॥११६॥ चणक प्रमाणवे मेरु ॥११७॥ जण जण होळे व दिव्यांक ।।११।। पण वळिविह सद्गणित ॥११॥ गुण स्थानदनुभव गणित ।।१२०॥ जिनर अयोगद गणित॥१२१ । सतुमत काव्य भूबलय ॥१२२॥ म रळि मागंणस्थानदनुभव योगद । मर जीवरसमास दरि ग वरुषव समयय कलपव समयव । वह समयदोळनन्तानक ॥१२३॥ हर रडुत तनुगुत बेरेयुत हरियुत । सरुव पुद्गल होन्दि सर लं* बरुत होगुत निळ्व जोवराशिगळनक । करगदे तोरुवनन्त ॥१२४॥ पी चातिनीच जीवनद जीबरनेल्ला पाचेगे सागिप दिया। राचमं भ* दुर् मनगलद पाहुड काव्य । ईचेगाचेगे अन्तरदिम् ॥१२॥ लोकदोळगे भद्रवागिसि पिडिदिदु । लोकदके बधिसि ग* ॥री करवागिरिसिप कल्याणद । शोकापहरणद अनक ॥१२६॥

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