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सिरि भूवहाय
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इसके प्रस्तार का आकार इस प्रकार है। यहां पर भी पहिले एक उपवास एक पारणा और दो उपवास एक पारणा करनी चाहिए। पश्चात् दो में से एक उपवास का अंक घटा देने पर एक उपवास एक पारणा, दो में एक उपवास का अंक जोड़ देने पर तीन उपवास एक पारणा, तीन में से एक का अंक घटा देने पर दो उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर चार उपदास एक पारणा होती है। इसी प्रकार जघन्य सिंहनिष्क्रीडित के समान आगे भी समझ लेना चाहिये। इसमें अंकों की संख्या एक सौ तिरपन है । इसलिए एक सौ तिरपन तो उपवास होते हैं और स्थान तैंतीस हैं। इसलिये तैंतीस पारणा होती है । इसलिये यह मध्य मिनिष्क्रीडित व्रत एक सौ छियासी दिन में समाप्त होता है ।
उत्तम सिंहनिष्कीडित एक से पन्द्रह ग्रंक तक का प्रस्तार बनाना चाहिये । उसके शिखर पर अन्त में (मध्य में) सोलह का अंक या जाना चाहिये और उपर्युक्त सिहनिकीडितों के समान यहां पर भी दो दो अक्षरों की अपेक्षा से एक एक उपवास का अंक घटा बढ़ा लेना चाहिये । इस रीति से जोड़ने पर जितनी इसमें अंकों की संख्या सिद्ध हो उतने तो उपवास समझने चाहिये और जितने स्थान हों उतनी पारणा जाननी चाहिये । इसके प्रस्तार का आकार १२१३२४३५४६५७६६७३१०६ ११ १० १२ ११ १३ १२ १४ १३ १५ १४ १५ १६ १५ १४ १५ १३ १४ १२ १३
११ १२ १० ११ १०८६७८६७५६४५३४२३१२१ इस प्रकार है । यहां पर भी पहिले एक उपवास एक पारणा और दो उपवास एक पारणा करनी चाहिये । पश्चात् दो में से एक उपवास का अङ्क घटा देने पर एक उपवास एक पारणा, दो में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर तीन उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवास का अंक घटा देने पर दो उपवास एक पारणा, तीन में एक उपवास का अंक मिला देने से चार उपवास एक पारणा, चार में से एक उपवास का अंक घटा देने पर तीन उपवास एक पारा, चार में एक उपवास का अंक बढ़ा देने से पांच उपवास एक पारणा, पांच में से एक उपवास का अंक घटा देने से चार उपवास एक पारणा, पांच में एक उपवास का अंक जोड़ देने से उपवास एक पाररणा, छे में से
सर्वार्थ सिद्धि संघ मसौर-दिल्ली
एक उपवास का अंक घटा देने पर पांच उपवास एक पारणा, खै में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर सात उपवास एक पारणा, सातमें से एक उपवास का अंक घटा देने पर है उपवास एक पारणा, सात में एक उपवास का अंक मिला देने से आठ उपवास एक पारणा, आठ में से एक उपवास का अंक घटा देने पर सात उपवास एक पारखा, आठ में एक उपवास का अंक मिला देने पर नो उपवास एक पारणा, नी में से एक उपवास का अंक घटा देने पर आठ उपवास एक पारणा, नौ में एक उपवास का अंक जोड़ देने पर दश उपवास एक पारणा, दश में से एक उपवास का अंक घटा देने पर नौ उपवास एक पारणा, दश में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर ग्यारह उपवास एक पारणा, ग्यारह में से एक उपवास का अंक घटा देने पर दश उपवास एक पारणा, ग्यारह में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर बारह उपवास एक पारणा, बारह में एक उपवास का अंक मिला देने पर तेरह उपवास एक पारणा, तेरह में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर चौदह उपवास एक पारणा, चौदह में से एक उपवास का अंक घटा देने पर तेरह उपवास एक पारणा, चौदह में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पन्द्रह उपवास एक पारणा, पन्द्रह में से एक उपवास का अंक घटा देने पर चौदह उपवास एक पाररणा, पुनः पन्द्रह उपवास एक पारणा और सोलह उपवास एक पारणा, सोलह में से एक उपवास का अंक घटा देने से पन्द्रह उपवास एक धारणा, पन्द्रह में से एक उपवास का अंक घटा देने पर चौदह उपवास एक पारणा, चौदह में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पन्द्रह उपवास एक पाररणा, चौदह में से एक उपवास का अंक घटा देने से तेरह उपवास एक पारणा, इत्यादि रीति से यागे भी समझना चाहिये । इस रीति से इस उत्तम सिहनिष्क्रीडित व्रत में प्रकों को मिलकर संख्या चारसो छियानवे है। इसलिए इतने तो इसमें उपवास होते है धीर स्थान इकसठ हैं इसलिये इकसठ पारणा होती है । यह व्रत पांच सौ सत्तावन दिन में समाप्त होता है ।
ग्रन्थकार ने तीनों प्रकार के सिंहनिष्क्रीडित व्रतों की संख्या और पारणा गिनकर बतलाने की यह सरल रीति बतलाई है। जघन्यसिह निष्क्रीडित व्रत में साथ उपवास और पारणा बतलाई है एवं उसका प्रस्तार पांच अंक तक
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