Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 150
________________ १२६ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ वालोर-विस्ती की खानि है तथा नन्दी गिरि से हेढ़ सौ मील दर पर ताले का नाम का गांव पूर्व गंग वंश के राज्य काल में भी यह चतुर्मुखी सिंह भारत का राज्य चिन्ह है जो कि पूर्व में इन गंग राजामों की राजधानी था। इसके तालेकाडू के आस- रहा है । यह सिंह ध्वज का लांछन चिन्ह चौबीसों तीर्षकरों के समवशरण में पास में मलपूर नाम का एक पहाड़ है जिस पर पूज्यपादाचार्य के आदेश से रहने वाला होने के कारण अथवा प्रत्येक तीर्थकर के समय में होनेवाले सिंह इन्हीं गंग राजाओं के द्वारा बनाया हुआ विशाल जिन मन्दिर है तथा पद्मावती की आयु, मुख, प्रमाण, देह प्रमाण आदि का विवरण इस भूवलय अन्य के की मूर्ति भी है जिस मूर्ति की बड़ो महिमा है। जैन हो नहीं अजैन लोग अपना इसी अध्याय में आने वाला है । अतः प्रमाणित होता है कि यह चतुर्मुखी सिंह इच्छित पदार्थ पाने की इच्छा से उसको उपासना किया करते हैं और यथोचित का चिन्ह बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है। फल पाकर संतुष्ट होते हैं । इसी नन्दी गिरि से पांच मील दूर पर यलब नामक इस मन्दिर के ऊपरी भाग में मृग, पक्षी, मानव आदि के सुन्दर चित्र एक गांव है जो कि पूर्व जमाने में एक प्रसिद्ध नगर के रूप में था। वहीं पर बनाए हुए थे। उन सब में वीर थी का घोतक यह सिंहासन था। यह सब कुमुदेन्दु भाचार्य रहते थे। यलव के मागे भू लगाकर उसे प्रतिलोम रूप पढ़ने । भरत चक्रवर्ती का चलाया हुमा चकांक क्रम था ७७ से भूवलय हो जाता है। यह सिंह बीर जिनेन्द्र का वाहन (पगचिन्ह) था और प्रातिहार्य भी यह नान्दी गिरि प्राचीन काल से श्री वृषभनाथ के समय से बहत बड़ा था। जैन धर्म, क्षत्रिय धर्म, शौर्य श्री, सारस्वत श्री इन सब विद्याओं का पुण्य क्षेत्र माना गया है ।७३। प्रतीक यह सिंह था ।७८) महावीर भगवान का सिंहासन सोने का बना हुआ था और महद आदि यह सिंह समचतुरस्र संस्थान और उत्तम संहनन से युक्त रचना से ऋषम जिनेन्द्र को प्रतिमा के नीचे रहने वाले सिंहासन का सिंह भी सोने का बना हुआ था, एवं मंगलरूप था, विमल था, वैभव से युक्त था, भद्रस्वरूप पा ही है। क्योंकि इस पर्वत के नीचे सोने की खान पाई जाने से मंगल ख्य बतलाने तथा भगवान के चरणों में रहने से इस सिंह को शिव मुद्रा भी कहते हैं।७ वाला सोने की वस्तु बनाने में क्या आश्चर्य है । इस पर्वत में ही भूवलय ग्रन्थ ऋषभ प्रादि तीर्थंकरों से क्रमागत सिंह की आयु और ऊंचाई, चौड़ाई को आचार्य कुमुदेन्दु ने लिखा है ।७४। सब घटती गई है। अन्यत्र ईश्वर इत्यादि का वाहन भी सिंह प्रतीक दीख . भगवान के चरणों के नीचे रहने वाले सिंह के ऊपर के कमलों की पड़ता है।८०-८१। बत्तीस लाइनें हैं जिनमें एक-एक लाइन में सात-सात कमल हैं। (३२४७= भगवान के इन सिंहों को नमस्कार करने से सौमाम्य की प्राप्ति होती २२४) कमल हुए। भगवान के नीचे रहने वाले एक कमल को मिलाकर २२५ है । कमल हो जाते हैं। उन कमलों का श्राकार स्वर्ण से बनाकर नन्दी पर्वत के सब सिहों में समवशरण के अम भाग में रहने वाले सिंह को ही पग्रभाग में बनाये हुए विशाल मंदिर में गंग राजा शिवमार ने रखा था ।७५ लेना ।३। दया धर्म रूपी धवल वर्ण भगवान का पादद्वय कमल के ऊपर एक सिंह के चार पैर होते हैं। अब यहां चारों तरफ प्राउ चरण दीन विराजमान था । वहाँ सिंह का मुख एक होते हुए भी चारों तरफ चार मुख पड़ते है ।८४॥ दीखते थे, क्योंकि यह चतुमुंखी सिंह के मुख का चिन्ह गंग राजा का राज्य प्रत्येक सिंह के मुख पर केश विशालता से दीख पड़ते है। चिन्ह अर्थात् भरत खण्ड का शुभ चिन्ह था ।७६। इस सिंह को इतना प्राधान्य क्यों दिया गया? इसका उत्तर यह है कि विवेचन--माज के भारत का जो राज्य-चिन्ह चौमुखी सिंह है वह । भगवान के ८ प्रातिहार्यो में एक प्रातिहार्य होने से इसका महत्व इतना हुआ। अशोक चक्रवर्ती का राज्य चिन्ह था, ऐसी मान्यता प्रचलित है। अशोक से भी। एक सिंह होते हुए भी चार दीख पड़ने से गणित शास्त्र के क्रमानुसार

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