Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 21
________________ शालोपदेशमाला-बालावबांध (५) तिसई-तिसई, कन्हइ-कन्हलि, पाहि-पाहिंति, लगो-लगइ, आव्या-आविआ, हुआ-हुआ इत्यादि रूपोमांबे के वधु रूपो अनेक वार मळतां होई ए बधां रूपो प्रचलित होवान अनुमानी शकाय छे. अमे बन्ने के वधु प्रकारना रूपो यथावत् राख्यां छे. १६ मार्च, १९८०. -र. म. शाह अमदावाद बालावबोधो प्राचीन गुजराती गद्यसाहित्य घणु ज विपुल छे,' अने तेमां कथाप्रधान बालाबचोधो सौथी विशेष महत्त्वना छे. चोदमी शताब्दःथ आ प्रकारनी कृतिओ मळे छे. तेमांनी कथाओ पूर्ववर्ती प्राकृत-संस्कृत कथाओ पर आधारित होवा छतां घणी वार ते केवळ यांत्रिक शब्दानुबाद नहीं, पण जुदा श्रोताओने लक्षमा राखाने, मूळ कथामां जरूरी फेरफारो करी नवेसरथी कहेली होय छे. आथी तेमने धणे अंशे स्वतंत्र कथाकथनना गद्य तरीके लई शकाय. 'षडावश्यक', 'उपदेशमाला', 'शीलोपदेशमाला', 'पुष्पमाला', 'योगशास्त्र', 'भवभावना', जेवा औपदेशिक प्रकरणो परनी दीकाओ कथाकोशो जेवो हती, तेथी तेमना परथी संख्याबंध बालाबबोधो रचाया छे. आ उपरांत 'ज्ञाताधर्मकथा' जेवो कथाप्रधान आगमग्रंथ, 'जंबुचरित्र, 'पांडवचरित्र' अने 'कल्पसूत्र' (तीर्थकरचरित्रो) जेवो चरित्रप्रधान कृतिओ अने 'पंचतंत्र' जेवी लोकप्रिय कृतिओ पण कथाप्रधान बालाबबोधो माटे अनुकूळ नीवडयां छे. आमांथो केटली कतिओ पर तो उत्तरोत्तर अनेक हाथे नवनवा बालाबबोघ-पांचसात के आठदस सुधी पण रचाता रह्या छे. तरुणप्रभ, सोमसुन्दर, हेमहंस, माणिक्यसुन्दर, मेरुसुन्दर, आसचन्द्र वगेरेनुं आ विषयमा महत्त्वन अर्पण छे. प्राचीन पद्यसाहित्यनो सरखामणोमां गधसाहित्यना सम्पादन, संशोधन उपर घj ज ओछ लक्ष अपायु छे. मुनि जिनविजयजीना 'प्राचोन गुजरातो गद्यसंदर्भ' (ई.स.१९३०)थी आ दिशामां पहेल थई.' तेमां तथा ते पछीना चारपाँच प्रयासों द्वारा अद्यावधि प्रकाशित कथायुक्त गद्यकृतिओनी विगतो नीचे प्रमाणे छः षडावश्यक-बाला. १३५५ तरुणप्रभ जिनविजय संपादित 'प्रचीन गुजराती गद्य (केटलोक अंश) संदर्भ'मां उपदेशमाला-बाला० १५ मीनो पूर्वाध सोमसुन्दर (केटलोक अंश) योगशास्त्र-वाला (केटलोक अंश) षडावश्यक-बाला० १५ मीनो हेमस केटलोक अंश . मध्य भाग उपदेशमाला-बाला १४८७ नन्न टी. एन. दवे सम्पादित (१९३५) १.मो. द. देशाई, 'जैन गूर्जर कविओ', भाग ३, खंड २ (१९४४) पृ.१५७२-१७०३; भो. ज. सांडेसरा, 'गुजराती साहित्यनो इतिहास', ग्रंथ१ (१९७३), पृ. २९३-२९८; ह. च. भायाणी, 'गुजराती साहित्यनो इतिहास, ग्रथ २-(१९७५), पृ. ६६७-६६८, ६७५-६७८. २. ते पहेलो तेस्सितोरोए तेमना 'नोट्स ओन ग्रामर ओव ओल्ड वेस्टर्न राजस्थानी' (१९१४)मां बालावबोधोमांथो योडोक अंश आ'यो हतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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