Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
शीलोपदेशमाला-बालावबोध
लव करवता. घार
प्रणाम करी, वननइ फूले करी प्रतिमा पूनी। तेतलई तापस एक महावृद्ध, मस्तक जटा परतउ, कन्यानइं साथिई लेई, तिहां आविउ । तिसि कन्याइं ते कनकरथ देखी चोंतविडं, 'ए इंद्र कि चंद्र कि कंदर्प ?' इम चीतविवा लागी। एलइ कुमारई प्रतिमा नमस्करी । पछइ तापस मुनिना प्रणाम कीधउं । तिसिइ तापस मुनिइ 'चिरं जीव' ए 'आशिषा दीधी, पूछिवा लागउ, 'अहो कुमार ! ताहरउं कुण कुल ? कुण नाम ? कुण ठाम ?' तिवारई कुमारनई बंदीजनिई सर्व कुलनाति प्रकट कीधां । पछइ कुमारिई कन्याना मुख सामहउं जोई तापस पूछिउ, 'ए कउण कन्या ? ए कहिन उं देहरउं ? अनइ तुम्हे कुण १ तिवारइ तापस कहिवा लागउ, 'ए कथा मोटी छह । एह-भणी जेतलई हैं पूजा करी पाछउ आवउं, तां-लगा पडखउ ।' पछद्र कुमार वचन पडिवजी, मंडपि आवी बइठउ । तिसिइ ऋषि कन्या-सहित देवगृह-माहि मा पूनी पाउ आविउ । एहवइ वली कन्या-सामुहउं कुमार नोवा लागउ । तेतलइ मुनि कुमारनई संघातिई लेई, प्रासादनइ उत्तरदिसिइ *उटज एक छइ, तेह-माहि लेई आविउ । तिहां कुमारनइ पगमोअण देई प्रहुणागति कीधी।
पछइ तापस वात कहिवा लागउ, 'वत्स ! इहां मंत्रसंज्ञा नामिइं नगरी हती। तिहां श्री हरिषेण राजा, प्रियदर्शना राणी। तेहनउ पुत्र अजितसेन एहवइ नामिई विख्यात हउ । हिवा अन्यदा वाहीआली-भणी वक्र-शिक्षित तुरंगमि चडी राजा नीकलिउ । तिहां अश्व फेरवत राजा अपहरी ए वन-माहि लीधउ । तिनिइं राजा पणि दक्षपणा-लगा बडनी डालई वलगउ। घोडउ वही आघउ गयउ। पछइ राजा डाल-इतु ऊतरी तृषाक्रांत हूंतउ वन-माहि फिरवा लागउ। तेतलइ तलाव एक दीठउं । तिहां हाथ-मुख धोई पाणी पीध। तिसिई विश्वभति तापस एक आविउ । राजाई प्रणाम कीधउं । ते तापस कच्छ-महाकच्छनउ केडउ। तिणि भीआदिनाथनउ आशीर्वाद दीघउ ।
पछई राजा अनइ ऋषि माहोमाहि कुशल समाचार पूछिवा लागा । एवइ वन-माहि कोलाहल हूउ । आश्रमवासी ऋषि कहइ, 'ए सिउं कोलाहल !' तिसिई राजाइ चीतविउं, 'मुझ केडिइ माहरउं कटक आवि "घटइ ।' इभिइ सर्व साभंते आवी राजा प्रणमिउ । पछइ तापसे मास एक राजा राखिउ। राजा पणि तापसनी सेवा करिवा लागउ । हिवई. राजाई तिहां उत्तंग-तोरण प्रासाद कराविउ । माहि श्री-आदिनाथनी प्रतिमा मंडावी । पछइ राजा आपणा नगर-भगी चालिसा लागउ। एड्वइ तापम राजानई विषापहार मंत्र एक दीघउ । हिव राजा आधी आपणइ नगरि सुखिई राज पालिवा लागउ । इम एकदा सभा-माहि राजानइ बइठे द्वारपालि
पी वी तो कीधी. 'स्वामिन् ! मंगलावती-नगरोइ प्रियदर्शन राजा. विद्य-प्रभा राणी तेहनी पत्री प्रीतिमति । तेहनइ सापनउ डंस हूउ । ते विष वलइ नही । पछइ राजाई अम्हे तुम्ह-समीपि मोकल्या । हिवइ तिम करु, जिम जीवदान दिउ ए वात सांभली राजा घडीआ-जोअणी सांदि सज्ज करावी, आपणि तिहां अवी, ऋषिदत्त मंत्र, तेहनइ योगि तत्काल कन्या निर्विष कीधी । पछड पिताई ते कन्या तेह जि राजानई दधी । पाणिग्रहण करी राजा आपणह घरि आविउ ।
हिवइ केतलउ काल राजाई राज पाली, पुत्रनइ राज्य देई, पछइ राजाइ प्रिया-सहित तापमा दीक्षा लीधी, विश्वभूति तापस-समीपि । पछइ बेहू सुद्ध शीलवत पालई छई। इसिड प्रोतिमतीन
१. K. ए आशीर्वाद दीधउ । २. P. उडीउ एकु । ३. K. पाहुणाचार कीधउ । ४. K. विना बधी प्रतिओमां 'मंत्रिसंज्ञा' पाठ छे । ५. K. हसिड।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234