Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 155
________________ ११४ मेरुसुंदरगणि-विरचित तिवारt दवदेती कहइ 'ए वात पछेइ कीजिसिइ । इम कहइ हूंतर चंद्रयशाई आपणइ घरि . आणी, स्नानभोजन करावी, सर्व नलनी कथा पूछो । दवदंतीइ सर्व वात कही । तिवारई सघलानइ मनि हर्ष ऊनउ । तेतलई कोई एक देव, आपणी कांतिई सभा-माहि उद्योत करतउ, आवी दवदंतीनइ प्रणाम करी कहइ, 'हे मात ! ते हूं पिंगल चोर, जे तई प्रतिबोधी, दीक्षा देवरावी । पछा हूं श्मशान -माहि प्रतिमाइ रहिउ हूंतउ । तिहां चितानउ दवानल आविउ, तिणि करी हूं दाघ । पणि मइ परीसह अहिआसिउ । तेह - लगइ मरी, ताहरइ प्रसादइ, हूं सौधर्म - देवलोक देवता हु ।' इम कही सभा-माहि सात कोडि सुवर्णनी वृष्टि कीधी सर्व देखतां । पछइ ते धर्मनउं फल देखी राजाईं जिनधर्म पडिवजिउ । तेतलइ हरिमित्र काइ, 'इ दवदंती घणउ काल रही । हिवइ पितानई घरि मोकलउ ।' पछइ राजाई आपणउ कटक संघाति देई सती पितानइ घरि मोकली । पिताई पणि आवती जाणी, माता-पिता सामूहा आव्या । तिहां दवदंतीई मा-बाप नम्या । तिवारई हर्ष अनइ विखवाद समकाल हुआ । पछइ नगर - माहि आणी, सात दिन ताइ महोत्सव करी भीमि राजाई नन सर्व वृत्तांत पूछिउ । तु अहो कुब्ज ! जिवारइ दवदंतीह ते नलनी सर्व वात कही तिवारई हूं तिहां बइठउ हूं तउ । पछइ दवदंती बापनइ घरि रही । तिहां राजाई हरिमित्रनई पांचसई गाम दीघां । अनइ वली कहिउं, 'नलनइ आगमनि तुझनइ अर्ध राज आपिसु ।' इसिई प्रस्तावि पूर्वि आपणइ काजि दधिपर्ण राजानउ जण एक सुंसुमारपुर थकउ भीम-राजा-कन्हलि आविउ हूंतउ, तेणइ भीमराजा - आगलि एहवी वात कीधी जु, 'नल राजानउ सूआर दधिपर्णराजा - कन्हलि आविउ छइ । ते सूर्यपाक रसवती करइ छइ ।' ए वात सांभली दवदंती कहइ, 'तात ! नल टाली ए विद्या अनेथि नथी । पणि गुटिका, मंत्र, देवतांना योग-लगइ आपणउं रूप गोपविडं घटइ | तु सही तुम्हारउ जमाई तेह जि घटइ ।' पछइ भीमि मुझनइ सीख देई हूँ इहां मोकलिउ । हिव हूं पूछतउ पूछतउ इहां आविउ । तूं कूबडानउं रूप देखी मइ चींतविउ, ते नल किहां अनइ तूं किहां ?" तिवारइ कुब्ज रोवा लागउ । दवदंतीनउ वियोग चीति आविउ । पछइ कुन्ज कहइ, 'अहो ब्राह्मण ! तू' भलइ आविउ । वारु कथा कही जे मुझनइ संतोष ऊपजाविउ । तु आज तूं माहरइ घरि आवि ।' इम कही ब्राह्मण घरि तेडी, सूर्यपाक रसवतीनुं भोजन करावी, अनइ जे पूर्विह लाख टंका लाउ हूंत ते ब्राह्मणनइ दीघउ । वली आपणां आभरण दीधां । पछइ ब्राह्मणि भीम राजा आगिलि जई ते कूडनउ रोहवउं, सूर्यपाक रसवतीनुं करिवउं, लक्ष टंकानड देवउं - ए सर्व वात कही । तिवारई दवदंती कहइ, 'तात ! इहां कांई विचारणा न करिवी । ए सही कूबडनइ रूप तुम्हारउ जमाई छइ । एक वार किम ही इहां आणउ, जिम हूं ऊलखूं ।' तिवारइ भीम कहइ, 'कूडउ सयंवरामंडप मंडावी सुसुमारपुरनउ अधिपति तेडावीइ । अनइ जु नल होसिइ तु ते साथि आपणी आविसिह । कांई, नारीनउ पराभव पशुनइ पणि दोहिल हुइ । वली अश्वना हीयानी वात नल टाली बीजउ को न जाणइ । एह-भणी सयंवरा - मंडपनरं मुहूर्त्त दूकडु कहावउ ।' पछई भीमराजाई दधिपर्णराजा-समीपि दूत मोकली कहाविडं, 'अहो दधिवर्ण राजेन्द्र ! जे दवदंतीन संयंवरा मंडप छछ । चैत्र शुदि पांचमि महूर्त्त छइ । इणि कारणि तुम्हे वहिला आविज्यो ।' इसिउं कहाविदं दधिवर्ण विववाद करइ । तिवारइ कूबड कहइ, 'राजन् ! आज सचिंत कां ?' तिवारइ राजा कहइ, 'अहो कूबड ! नल राजा परोक्ष हूड सांभली सांप्रत भीम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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