Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 212
________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध पणि एक वात सांभलि-ए रामलक्ष्मण बिहूंनइ माहो-माहि सिंहनादनउ संकेत छ ।' ए वात जाणी जिम रावणि सिंहनाद कीघउ, तिम जि श्रीराम सासक हूंतउ शीतानइ कहइ, 'हे शीते ! लक्ष्मणनइ आपदा आवी ।' तिवारइ शोता कहइ, 'स्वामी! हिवइ विलंब म करि । तूं लक्ष्मणनइ जई राखि ।' इम कहिइ हूंतइ राम धनुष चडावीन लक्ष्मण-भणी चालिउ । तिसिइ राणि प्रस्ताव जाणी, विमान इतु ऊतरी, शीतानइ अपहरी, विमानि बसारी जावा लागउ । तेतलइ शीता बदन करिवा लागो। एहवइ जटायु पांखीउ आपणे नखे करी रावण-साथि झुझ करिवा लागउ । तिहां रावणि खगि करी जटायु पांखीउ भुई पाडिउ । पछइ रावण शीतान लेई चालिउ । तिवारइं शीता महा-विलाप करती कहइ, 'हा भ्रात भामंडल ! हा रामलक्ष्मण ! मुसनइ राखउ, राखउ ।' ईम विलाप करती मागि जाइ छ । इसिइ भामंडलनउ पायक एक आकाशि आवतु हंतु, तीणइ ते शीतानां हरण जाणी रावण-साथि झूझ मांडिउ । तिवारइं ते .ही रावणि खड़गि करी भुई पाडिउ । इम आकाशि जातां रावण शीतानइ कहइ, हे सुभगि ! तूं विलाप कांई करि ? हं तु रावण, लंकानउ अधिपति । ताहरउ आदेशकारक थाउ छ । हिवइ त ते वनेचर रामनइ मूकी माहरउ अंगीकार करि ।' इम कहितउ रावण शीतानइ लेई लंकाइ आयउ । तिहां अनेक चाटुकार वचने करी प्रार्थइ, पणि शीतानउं रोम मात्र भेदीइ नहीं । किन एक 'राम' 'राम' स्मरतो रहइ । तिहां वली एहवउ अभिग्रह लीघउ, 'जां राम-लक्ष्मणन कुशलसमाचार न पामउं, तां-सीम मुझनइ अन्ननउ नेम ।' इसिइ तिहां लक्ष्मणनइ झूझ करतां श्रीराम आविउ । ते देखी लक्ष्मण ससंभ्रांत इंतु कहा, 'बांधव! शीता एकली मंकी इहां कांइ भाविउ ?' तिवारइ श्रीराम कहइ, 'हे भ्रात | तई सिंहनाद कीघउ, तेह-मणी हूं आविउ ।' तिवारई वलंतु लक्ष्मण कहइ, 'भ्रात ! मई तु सिंहनाद न कीघउ । हिव तं पाछउ जा। सही, नूं कुणिहि छेतरिउ।तू ऊतावलउ जा । हिवडा जि वइरीनइ हणी ताहरी पठिई आवउं छउं ।' इम जेतलइ श्रीराम पाछउ आवी जोइ, तु शीता न देखड। तिवारइ राम विलाप करतु, छेद्या वृक्षनी परिई मूर्छा-गत हूंतउ, भुई पडिउ। पछइ वनना वाय लागइ सचेत हुई वन जोइवा लागउ । तिहां जटायु पांखीउ खड्गाहत, सुसतउ हूंतउ, भूमिकाइ पडिउ दीठउ । तीणइ शोताना हरणनउ वृत्तांत कहिउ । पछइ श्रीरामइ जटायु पंखीयानइ नवकार दीधउ । तेहनइ प्रमाणि जटायु मरी माहेंद्र-देवलोकि देवता हउ । हिवइ राम शतानइ पनि वनि जोतउ मूर्छागत हूंतउ वली भूई पडिउ । तेतलई लक्ष्मण वइरीनइ बीपी राम-समीपि आविउ । तिसिई राम अचेत देखी पाणी सींची सचेत कीधउ । पछइ कहई, 'बांधव ! ताहरइ कीधइ शीतानइ मूंकी आविउ हूंतउ, पणि जोइ-न, देविकीसिउं की ?' तिवारई वल लक्ष्मण कहइ, 'बांधव ! विखवाद म करि । शीता तउ छलिई करी अपहरी, पणि हिवइ कांई आपणपे उपाय करीइ । पणि वली एक विशेष सांभलउ, जे मई सांप्रत खर राक्षस हणिउ, तेहनउ वइरो विराध आगइ पाताल-लंकानउ अधिपति हंत। ते खरि काढिउ छइ, ते मुझनइ आवी सिलिउ । तेह-साथिई मई मित्राचार पडिवजिउ छइ । तु चालउ, तेहनह पितानउ राज देई आपणउ कोजइ ।' पछइ श्रीरामि ते विराधनइ पाताल-लकानउं गज दीघउ । शुद अनइ सुपखा बेहू बोहतां नासी रावण-'कन्हलि गया। १. C कन्हइलि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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