Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 158
________________ शीलोपदेशमाला - बालावबोध ११७ यौवनभरि आवी । इसिइ सोपारइ पत्तनि राजा श्री. रतिवल्लभ राज करइ । तेहनइ मेघरथ राजासाथि प्रीति हुई छइ । ते मेघरथ - राजानई रतिवल्लभ दिहाडीनी भेटि मोकलइ । इम बिहुंनइ प्रीति वाधिवा लागी । दूत माहोमाहि आवता जि रहई । अन्यदा मेघरथ चतवइ जु, 'रतिवल्लभ समान राजपुत्र कोई दीसई नही । तु माहरइ कमला पुत्री छइ ते रतिवल्लभनई देई प्रीति वाघती करउं ।' इम विमासी मेघराजा सभा-माहि आवी बइठउ । तेतलइ कमला पुत्री पितानइ उत्संगि जई बइठी । तिसिह वरनी चिंता ऊपनी । राजा प्रधाननइ कहइ, 'पुत्री नइ वर कउण कीजिसिइ ?' तिवारई प्रधान कहई, 'स्वामिन ! कुल, शील, रूपि, यौवन करी रतिवल्लभ-राजा योग्य दोसइ छइ ।' तिवारइ राजा कहइ, 'महरी मनसा सारइ तुम्हे वचन कहिउं । तु इणि कारणि राजा मुहताने लोचने करी सहस्राक्ष कहीइ ते वात साची ।' पछइ प्रधाने कंडं, 'स्वामी ! आपणपे दूत मोकली नात्रु करावीइ ।' पछइ राजाइ सार्दूल प्रधान मोकली, लग्न-ऊरि रतिवल्लभ तेडावी, भलइ मुहूर्ति रतिवल्लभनइ आपणी पुत्री कमला दीघी । ars विस्तारि पाणिग्रहण हूउं । तिहां हाथ-मेल्हावणीइ रत्न, अलंकार, गज, अश्व घणा दीघा । पछड़ रतिवल्लभ परणी घर-भणी चालिउ । मेघरथ-राजा संप्रेडी पाछउ वलिउ, अनइ रतिवल्लभ मार्ग उल्लंत्री आपणइ नगरि महाविस्तारि आविउ । तिहां कमला- सहित सुख भोगवतां घणा दिन गया । इस समुद्र माहि गिरिवर्धन नगरि कीर्त्तिवर्धन राजा राज करइ । पणि ते महा स्त्री लालुन । तिणि अन्यदा कमलानु रूप सांभली काम-विह्वल हूउ । तिवारइ युगंधर - मित्र मंत्रवादी एकांति तेडी कहिउँ, 'ताहरी प्रीति, ताहरा मंत्रनु सिउं फल, जे हूं कमला- त्रीनइ कीधइ दुःखी था छउं ?' तिवारई मित्र कहिउ, 'स्त्री तु चिहुं प्रकारे छइ एक पतिव्रता, बीजी असती । तिहां सती हुइ ते आणिवानउ सिउ प्रयास कीजइ ? जु कुशीलि स्त्री हुइ तु हिवडां आणलं ।' तिवारई राजा कहइ, 'ए वातनी सी चिंता करइ ? एकवार इहां-ताई आणि, जिम तेहनउ फलाफल देखाडउं ।' पछइ मित्र भूमिग्रह-माहि पइसी मंत्र जाप - होम तिम करिवा मांड्या, जिम क्षण-एकमाहि, कमला जिम पत्यंकि सूती हूंती तिम जि थकी आकर्षी आणी । तिसिइ युगंधर मित्र चीतवह 'एनइ जु हूं जगाडिस, तु मुझनइ सतीपणइ हिवडा जि भस्म करिसिइ ।' इम चींतवी कीर्तिवर्द्धननइ कहिउँ, 'मइ आकर्षणी - विद्यानइ बलि ते कमला आणी छइ । आघी वात तूं जाणइ ।' तिसिई प्रभाति कमला आपहणी जागी । जउ जोइ तु न ते गाम, न ते ठाम, न ते आवास । एकू न देखइ । तिसिह यूथ भ्रष्ट हरिणीनी परिदं सर्व दिशि जोइवा लागी । तेतलइ कीर्तिवर्द्धन राजा कहर, 'हे भद्रि ! ए घर, ए ठाम, ए संपदा, सहू ताइरउ । हूं इ ताहरउ आदेश - कारक छ ।' ए वात सांभली कमला रीसाणी हूंती कहइ, 'अरे दुष्ट ! तू कीर्तिवर्द्धन फीटी आज अकीर्तिवर्द्धन हूउं । तु मुझ आगलि सिउं ऊभउ रहिउ ? हूं तु रतिवल्लभराजानी प्रिया, तेतून किम होसिइ ? जिन रत्नावली कागनइ कठिन छाजइ । बापडा ! मुझनइ शीघ्र माहर घरि मोकलि । नहीतउ, माहरा भर्तारनां चाण ताहरा मस्तकनई दिग्पालनी पूजा-भणी कल्पसिहं ।' तिवारई कीर्तिवर्द्धन राजा कहइ, 'हूं बलात्कारि ताहरउं शील भांजिसु ।' इम कही सर्वांग लोहि वीटी, पगि अठील घाती, बंदीखाणइ घाती मूकी छइ । एहवइ रतिवल्लभराजा जु जागइ तु कमला राणीनई न देखइ । तिवारई चोरइ मुस्यानी परिर्इं राजा आकुल-व्याकुल हूंतउ सर्वत्र जोइवा लागउ । तुही न देखइ | पंछइ पाहुरी पूछया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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