Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सुंदरगणि-विरचित
वली सेठि पूछ, 'ते सुभट मई वखाणिउ अनइ तइ वखोडिउ ते कांइ ?' वधू कहर, 'तेहनइ पूठिह घा लागा हूंना पणि सन्मुख न ता ।' ए वात सांभली श्रेष्टि चमत्क रिउ हूं'तु वली पूछइ, 'वसतां नगरनइ तइ' ऊवस कांई कहिउं ?" तिवारइ वधू कहइ, 'जिहां आपण सगउ कोई नही, ते वसतउ इ सूनउ ।' वलो सुसरउ पूछह, 'मूंगन क्षेत्र फलिड देखी मइ कहिउ - ए क्षेत्रना घणोनद धाननउ वांक कांई नही हुई । तिवारई तई कहिउं - ए क्षेत्र आगिम खाध । ते तई इम कांई कहिउं ?' वधू कहइ, 'ए क्षेत्रना धणी टोहता हूँ, पणि निरादरा दीठा ।' पछइ श्रेष्टिइ ते क्षेत्रमा घणी पूछया । तणे कहि ं, 'अम्हे ए क्षेत्र आगिम खाघउं ।' ए वात सांगली श्रेष्टि गाढेरु हर्षिउ । वली सुसरउ पूछइ, 'पाणी भरी नदी, तेह-माहि खाडा पहिरिइ तूं कांई चाली ?' तिवारइ वधू कहइ, 'पाणि-माहि कीडा, कांटा, जलसर्प दोसई नही । तेह-भणी मइ खासडां पहिरियां ।' इत्यादि वात करतां क्रमिइ घरे आव्या । तिहां श्रेष्टि आपणी स्त्री, आपणउ बेटड तेडीनड् कड्इ जु, 'मइ अजाणपणइ तुम्हनइ भ्रांति ऊपजावी । पण ए साक्षात्कारि लक्ष्मी छ । एहनइ प्रसादइ मई दस लक्ष सुवर्ण आणिउ । वली तहीइ जे घडउ लेई रात्रिइ बाहर गई हूंती 'तहीइ ईणीइ रत्नराशि आणी छइ ।' इम श्रेष्टइ सर्व वृत्तांत कही छाणहरडं खणी रत्न काढयां । तिहां सघले दीठां | पछइ सर्वस्व घरनी स्वामिनी शीलवती हुई ।
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feat क्रमि श्रेष्टि अ'ऊवानइ क्षय परोक्ष हूउ । अनइ अजितसेन पुत्र कुटुंबनउ नायक कीधउ । पछइ ते बेहू श्रावक धर्म पालित्रा लागां । तिसिहं नगरनउ राजा अरिमर्दन, तीणइ पांचसई महुता नवा कीधा, पणि मुख्य महुतु नही । तेह-भणी राजा परीक्षा जोवा-भणी एहवी एक समस्या समस्त नागरीक लोकनइ कहइ । किसी ? - 'जे मुझनइ पगि करी आहणई, तेहनइ aaण दंड कीजइ ?' तिवारइ लोक कहइ, 'स्वामी ! तेहनइ शिरच्छेद कीजइ ।' पणि राजानइ ए वात मेलि नावइ । पछइ ए वात अजितसेनइ आवी शीलवतीनइ कही । तिसिइ शीलवती कहइ, 'तेहनइ सर्वांग आभरण दीजइ ।' तिवारइ अजिनसेनइ पूछिउ, 'ते किम ?' कहिउं, 'राजानइ प्रिया टाली कउण पाटू दिइ ?' ए वात सांभली अजितसेन सेठि राजा-समीपि जईनइ कहइ, 'जिणि पाहू दीधी तेहनइ सर्वांग आमरण दिउ ।' ए वात सांभली राजा संतुष्ट हूंतु ते अजित सेननइ सर्व प्रधान माहि मुख्य कीधउ ।
अन्यथा पर्यंत देशना राजा ऊपरि अरिमर्दन- राजाइ कटकी कीधी । तिहां अजितसेन संघाति तेडिउ, चालिवा लागउ । तिसिइ अजितसेन शीलवती प्रियानई कहइ, 'तू' एकली घरि किम रहसि ? किम शील पालेसि !" तित्रारखं शीलवती कहर, 'स्वामी ! जु इंद्र आपणपे आवइ, तुही माह शील खंडी न सकइ । अनइ जु तुम्हनर माहरउ प्रत्य नथी, तड ए फूलनी माल लइ । माहरा शीलन प्रमाणि सदाइ सश्रीक रहिसिइ । अनइ जहीइ मुझनइ कुशीलपणउं, तsts जाणे कुरमासि ।' इम कही अजितमेननइ कंठि कुसुममाला मूंकी । पछइ अजितसेन राजा - साथइ चालिउ । महांत अटवी-माहि गया । तिहां फलफूल कांई न पामोईं । तिसिइ अजितसेननइ कंठ फूलनी माला देखी राजा कहइ, 'एहवी अटवी-माहि एहवां फूल कहां ?" तिवारt अजितसेन कहइ, 'स्वामी ! माहरी शीलवती प्रियाना शीलनर प्रमाणइ फूलनी माला
१. C. तेही ईणीइ... | Pu. तेही ईणइ ।
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