Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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शोलोपदेशमाला- बालावबोध
१२७
ताहरउ बोल जु मान, तु 'पितानइ मिलवानउ संदेह पडइ ।' तिवाग्इ श्रेष्टि जागतउ हंतउ. साभिप्राय वचन सांमली कहइ, 'हे दुर्विनीत ! ए सिंउ बोलइ छइ ? तिवारइ शीलवती कहा, 'सुसरा | ए साची जि वात । कांई ? जे माहरा गुण हूंता, ते दोषनइ हेति हुआ, चंदननी परिई । हूं जहीइ बालकपणइ सर्व शास्त्र भणी, तहोइ काकरुत पणि भणिउं हूंतु ।' इणि वचनि श्रेष्टि सावधान थई सर्व वात पूछिवा लागउ । तिवारइ बहू कहइ, 'सुसरा । जिवारइ हं रात्रिह जागती हंती, एहवइ सिवा एक बोली । पछइ हूं तेहना सउणनइ अनुसारिई घडउ लेई नदीइ गई । तिसई निहां मृतक एक आविउं । तेतलइ ते नदी-हंतु बाहरि काढी, तेहनी कडिड आभरण हंता ते मइं लीधां। ते लेई घडा-माहि घाती हूं घरि आवी । पछइ मइ छाणहरा-माहिं घडउघातिउ । तु कहउ, ईणइ अपराधि हूं तुम्हे एतली भुई आणी । हिव वली ए वायस बोलिर । ते इम कहइ छइ जे, ए वृक्ष-तलइ दस लक्ष स्वर्ण छ । तेह-भणी हं कागनइ कह छउं-दाधा ऊपरि फोडउ म पाडि । आगइ आपदा-माहि पाडी छउं,' वली कांइ पाडइ १ ए वात सांभल, तिमिइ सुसरउ कहइ, 'हे वत्सि ! ए वात किसिउं साची १'इम कहितउ पलवटि बांधी. तरुणा पुरुषनी परिई कुदालउ हाथि लेई, कागनइ करंबउ 'देवरावी, ते वृक्षनइ मलि आवी खणिवा लागउ । तेतलइ माहि-हूंता दस घडा लाख लाख सुवर्ण भरिया नीकल्या । तु जाणे शीलवतीना गुण प्रगट हुआ । ते सोनुं देखी श्रेष्टि चीत इ, 'सही, ए शीलवती साक्षाकारि मूर्तिवंती लक्ष्मी छइ । जोउ, मई काचनी भ्रांतिइ मरकतमणि-समान ए वहू अवगणी ।। इम की सूवर्णक भ रथि घाती, शीलवतीनइ आपणउ अपराध खमावा लागउ । वली वली वधूनी प्रसंसा करत उ, वधूनइ २थि बइसारी रथ पाछउ वालिउ । तिसिइ वधू कहइ, 'माहरा बापनउं घर टूकडउं छइ । तेह-भणी एक वार पितानइ मिलउं ।' तिवारइं सुसरउ कहइ, 'हे सभगि । हिवडां तूं घरि आवि । आपगउं कुल "
उआलि ।' पछइ शीलवतीइ सुसराना दाक्षिण्य-लगई वचन मानिउं ।
पछड श्रेष्टिई रथ पाछउ खेडिउ । इम मार्गि आचतां पूछिवा लागउ, 'हे वस्सि ! ऊवस नगरनइ तई वसतउं कांइ कहिउ ।' तिवारइ शीलवती कहइ, 'जिहां आपणा सगा हुई. ते सूनइ वसतजाणिवउं । कांई १ जेतलई तुम्हे आव्या सांभल्या, तेतलई माहह माउलइ जि कई की ते तुम्हे दीठउ । तेह-भणी मई वसतुं कहिउँ ।' तिवारई चाणिक्यनी परिड वधनां वचन साभिप्राय जाणो वली श्रेष्टि कहइ, 'जिवारई हूं वड-तलइ ऊतरिउ तिवारइ त' तडका कांइ बइठी ?' वधू कहा, 'तुम्हे किसिउं सांभली उं नथी, जु वायस वडि बइठउ स्त्रीनड माथइ विटा करइ तु छ-मास-माहि भरिनइ मरण हुइ किवा महांत रोग आवइ ? अथवा बडनइ मूलि साप हुई। तेह-भणो मई उपाय करो ''उढणउं उढी, छाया म की अलगी बहठी ।' श्रेष्टि कहइ, 'वत्सि ! ताहरी भली बुद्धि ।'
१. C. L Pu. पिताइ । २. K सूनु । ३. K घालिउ । ४. K द्रव्य । ५. A. B. पाडी छइ । ६. K. देई । ७. K. Pu, खमाविवा । ८ K. Pu. अजूआलि । ९. K. जे कांइ भक्त कीधी ते तुम्हे दीठी । १०. K. चाणाक्य । ११. K. Pu, ओढणउ ओढी ।
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