Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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मेरुसुन्दरगणि-विरचित वली, ते मदनमंजरी दूती-पाहंति तेडावी, रथि बइसारी वली चालिउ । तेतलइ कटक चाली गयउ । पछइ कुमार सूनाडिनी वाटइ नीकलिउ । इम सूनइ मार्गि जातां विंध्यवन-माहि भीम पल्लीपति
आवी पडिउ । पछइ माहोमाहि युद्ध होवा लागउं । तिवारई कुमारना सुभट दिशोदिशि नासिवा लागा । इम कुमार अनइ भीम पल्लीपतिनइ युद्ध हता, जिवारई कुमार भीम जीपी न सकइ, तिवारइ कुमारि मदनमंजरो सारथी करी रथि बइसारी । तेतलइ भीम मदनमंजरीनइ रूपि व्यामोहिउ हूंतउ क्षोभ पामिवा लागउ । तिसिई कुमरि अवसर लही भीम हणिउ। मरण पामिउ। पछइ कुमार एकलइ रथि तीणी वाटइ निकलिउ । जे कटक दिशोदिशि नाठां ते तउ जूजूइ वाटइ पडिउं ।
हिवइ कुमार एकणि रथइ जातउ जेतलई अर्ध पंथ अवगाहिउ, तेतलइ बि पुरुष साम्हा मिल्या । ते-कन्हलि कुमारि वाट पूछी। तिसिइ ते पुरुष कहई, 'अहो ! ए वड-हूंता दि मार्ग छई। तेह-माहि जिमणइ मार्गि शंखपुर अलगउं हुइ, पणि मार्गि भय नहीं। अनइ डाबइ मार्गि शंखपुर दूकड हुइ, पणि मार्गि भय घणा। एक दुर्योधन नामइ चोर छइ, एक मदोन्मत्त हस्ती छइ, वलि एक सिंह छइ । तेह-भणी तुम्हे डाबी वाटइ म जाज्यो।' ए वात सांभली पछइ कुमारि ढूकडउ पंथ जाणी डाबी वाटइ रथ खेडिउ । तिवारई केतलाएक लोक कुमारनइ साथिइ चाल्या । तःणई मार्गि जातां कापालिक एक सन्मुख आवी कुमारनइ आशीर्वाद दीधउ । पछइ ते कापालिक कुमारनइ कहइ, 'हूं तीर्थयात्रा-भणी चालिउ छ', इणि कारणि ताहरउ साथ वांछ'। तिवारइ कुमारि ए बोल मानिउं । पछइ कुमारना रथ साथि ते कापालिक चालिउ । जु केतलीएक भूमिका गयउ, तु कापालिक इसिउं कहइ, 'अहो ! हूं इहां आगइ वरसालइ रहिउ हूंतउ, तेह-भणी इहां मुझनई गोकुलना धणी प्रहुणागत करिसिई । इणि कारणि, अहो कुमार ! साथ-सहित आज तू प्राहुणउ था ।' कुमार कहइ, 'मनिनउं भोजन करिवा युगतलं नही।' इन कइइ हंतह पछइ तीणइ कापालिक विष-मिश्रित दूधदही आणी दीधां। तिहां एक कुमार टाली बीजे सघले लीधां । लेई सघला इ साथरइ सूता ।
हिवइ जेतलइ कुमार आपणउ शंबल काही भोजन करिवा बइठउ, तेतलइ ते कापालिक खड्ग काढी कुमार समोपि आवी कहइ, 'अरे ! ते हूं दुर्योधन-नामा चोर । तइ किसिउं मारह नाम इ नही सांभलिउं ? तु हिव तूं प्रिया अनइ लक्ष्मी लेई किहां जाएसि ? ताहरा जे सखाइआ ते सर्व मइ विषइ करी मारिआ।' इम कही खड्ग काढी जेतलह कुमार-भणी धायउ तेतलइ कुमारि आपणइ खगि करी ते कापालिक बि-खंड कीधउ । पछइ कुमारई पाणी आणी कापालिकनइ मुखिई देवा लागउ । तिवारइ कुमारने गुणे रंजिउ हूंतउ कापालिक कहइ, 'ए पर्वत-माहि वडना 'कोटरनइ अहिनाणि माहरउं घर छइ । तिहां धन छई सर्व, अनई सुंदरी भार्या छ । ए सर्व तूं लेजे ।' पछइ ए वात कुमारि मदनमंजरीनइ कही । तिसिइ मदनमंजरीइ चित्ति विचारीनइ कहिउ, 'नाथ ! हिवडां आधा चालउ ।'
पछइ कुमार जेतलइ आघउ चालिउ तेतलइ वनगज एक सामुहउ आविउ। ते पणि हेलाई वसि कीघउ । इम वली केसरी सिंह आविउ । ते पणि आपणि शक्तिइ करी बि-खंड कीघउ । ईणी रीतिइ पंथ अवगाहता आगलि कमलसेना-प्रिया-सहित आरणउ कटक दाठउ। ते देखि हर्षित हंतउ पछिया लागउ, 'तुम्हे मुझ-पखई आधा किम चाल्या ?' तिवारई कुमारना प्रधान कहई, 'स्वामी! अम्हनइ कुणिहि एकणि ईम कहिउ जु, "कुमार आघउ चालिउ" ते-भणी
१. C. K. Pu. कोतर ।
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