Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
मेरुसुंदरगणि-विरचित तेतला घोडउ पडेउ' । पछइ कुमार वन-माहि फिरतउ, तिहां श्री-आदिनाथनउ प्रासाद देखी मनि हर्ष ऊपनउ । पछइ प्रासाद-माहि आवी श्री-आदिनाथनइ प्रणमी आगिली वाविइ स्नान - करी, वली फलफूल लेई, जगन्नाथ पूजी, जगती-माहि आवीउ । तेतलइ तिहां मुनि एक धर्मोपदेश
देतउ देखी, पछइ महात्मा-पाखती त्रिणि प्रदक्षिणा देई, प्रणाम करी, आगलि बइठ । तिसिइ तिहां केई-एक पुरुष दीक्षा-लेणहार देखी महात्मा-कन्हलि पूछइ, 'भगवन ! ए पांच पुरुष दीक्षा लिई छई, ते कउण? अनइ वली एहनइ वैराग्पनउ स्यउं कारण ?' तिवारद मुनि कहइ, 'अहो भद्र ! एहनउ संबंध सांभलि ।।
इहां वध्याटवी। तेह-माहि भीम नामा पल्लीपति रहइ । तेहना ए पांच इ बांधव । हिवइ तिहां कोई एक राजकुमर कटक लेई आवतउ हूंतउ । तेह-साथि भीमइ झूझ कीघउं । तिवारइ भीम मदनमंजरीनइ रूपिइ व्यामोहिउ हूंतउ काम-व्याकुल हूउ। तिसिई कुमारिइं ते पल्ल पति हणिउ । पछइ कुमार आपणइ नगरि आविउ । हिवइते भीमना पांच इ बांधव कुमारनइ हणिवा-भणी छिद्र जोई, पणि पहुची न सकई । इम एकदा ते कुमार प्रिया-सहित वन-माहि देखी ते पांच इ छाना देवकुल-माहि रह्या । इसिई कुमाग्नी वल्लभा सर्पनइ डसिइ अचेत हुई । तिवारइ तेहनइ विरहि कुमार अग्नि-प्रवेश करिवा लागउ । एहवइ विद्याधरि आवी प्रिया जीवाडी । कुमार हर्षिउ । पछइ प्रिया कहइ, 'स्वामो ! ताढी लागइ छइ, अग्नि आणि ।' इणि वनि कुमार स्नेहनउ वाहिउ
आप अग्नि लेवा वन-माहि गयउ। अनइ प्रिया देवकुठ-माहि मूंकी । एहवइ जे पूविई पांच इ चोर कुमारनइ हणिवा भगी देहरा-महि रह्या छई, तीणे दीवउ प्रगट कध।। तेतलई कुमारनी प्रिपाइ ते पांव इ चोर दीठ। हिवइ तेह-माहि जे लघु बांधव छइ, तेहनउं मन कुमारनी प्रिया-ऊपरि हां। अनइ ते स्त्रीनउं मन ते चोर-ऊपरि एउं । पछइ स्त्रीइ प्रार्थना कीधी । तिवारइं चोरिई कहिउं, 'जां ताहरउ पति जीवइ तां-ताई आपणपानइ संबंध न घटइ।' वली स्त्री कहइ, 'अहो । जेतलइ कुमार आवइ, तेतलइ कुमारन हगी निःशल्य करिसु ।' इम कहितां जि ते कुमार आगि लेई आविउ । तिसिई चोरे दीवउ ढांकिउ । पछइ कुमारि प्रिया पूछी, 'कहि-न, ए देवकुल माहि उद्योत सिउ हूउ ? तिवारइ आपण उ संबंध गोपवी स्त्री कहइ, 'स्वामी! तुम्हे जे आगि आणी, तेड्नइ प्रतिबिंबि उद्योत हूउ।' स्त्रीइं इम वेसास ऊरजाविउ । पछ आपणउं खड्ग पियानइ हाथि देई, "आप अग्नि प्रगट करिवा लागउ । तिवारइं तीणी पापिणीइ पति मारिवा-भणी खांड सज्ज कीधउं । तेलइ ते चोरनइ दया ऊपनी । चोर । लागा, 'जोउ. जेहनइ कीधइ ए कुमार अग्नि-प्रवेश करतउ हंतउ, तेह-ऊपरि स्नेह ऊतारी सांप्रत माहरइ विषइ राती हंती, वली तेहनइ मारिवा चीतवइ छइ। तु ए युवती स्त्रीनट केहउ वेसास, जे हूंता एतलां वाना हुई ?' यतः
___ अकीर्ति-कारणं योषित् योषित् वैरस्य कारणं ।
संसारे कारणं योषित् योषितं वर्जयेत्ततः ॥११॥ स्त्रीनउ एहवढं कारण जाणी ते पांचे इ चोर संसार-हूंता विरम्या। हिव जेतलइ तीणी स्त्रीई कमारना गला-भणी खांडउं मूकिउ तेतलई चोरे खांडउं खलहिउं ।'
जिम ते मुनिना मुख-इतु एवात सांभनी तिम जि कुमार स्त्री-ऊपरि विरतउ हउ । मर-माहि चौंतवित्रा लागउ,'मुझनइ धिकार, जे मइ जाति-कुल-विशुद्ध स्त्री छांडी ए-ऊपरि अनुराग कीधउ।' तिवारई मुनि कहा, 'अहो कुमार ! ईगइ कारणि ए पांच इ चोर दीक्षा लिइ छई।' एहवउ
१. K. रहिउ । २. C. आपणिपे सीत गमाविवा-भणी अग्नि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234