Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 202
________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध वृत्तांत सांभली ते चोरनइ खमावी स्त्रीनउं स्वरूप विमासतु मुनिनइ कहइ, धन्य ए चोर, जे एहवर्ड कारण देखी दीक्षा लिइ छई।' इम वली गुरुपई कहइ, 'स्वामिन ! ए सर्व तुम्हे-माहरउ जि वृत्तांत कहिउ । ते हूंय जि । तु तुम्ह टाली मुझनई ए कउण संदेह भाजत ? हिवइए पांच इ चोर माहरा बांधव हूया, जीणे हूं जीवतउ राखिउ । तु आज पछइ मुझनइ अरहंत देव, सुसाधु गुरु, जिन-प्रणीत धर्म-एह जि समकित्व सरणि ।' तिहां एहवउं समकित्व पडिवजी, आपणड घरि आवी, माता-पितानइ समझावी, कमलसेनाप्रिया-सहित दीक्षा लेई, वैराग्य-रंग-पूरित हूंतउ, चारित्र पाली, ते अगडदत्त महात्मा मोक्ष-सुखनइ भाजन हूउ । इहां अगडदत्त-मुनिनउ दृष्टांत संक्षेपिई करी कहिउं । हिव एहनउ विस्तार श्री-वसदेवहींडि'-हतउ जाणिवउ । इति श्रीशीलोपदेशमाला-बालाविबोधइ श्री-खरतरगच्छ-नायक-श्री-जिनचंद्रसूरि-शिष्येन विरचित श्रीअगडदत्तमुनि-कथा ॥४०॥ * अथ वली नारीनउ वेसास करतां दुर्दशा पामीइ ते कहइ मुह-महुरासु निरिघण-मणासु नारीसु मुद्ध वीसासं । जंतो लहसि अवस्सं पएसिराउ व्य विसम-दसं ॥८७ व्याख्याः - हे मुग्ध = हे सुद्ध-हृदय ! ए नारी मुखिइ महा मधुर हुइ, अनइ मन-माहि महा-निर्पण दृष्ट-चित्त हइ । तु अहो अप्राज्ञ ! इसी नारी स्त्रीनउ जु तं वेसास करिसि. तउ त तेहनड विश्वासि जातउ हतउ अवश्यमेव-निश्चइ-सिउं विषम पाडुई दशा पामिसि । कणनी परिई १ प्रदेशी-राजानी परिइ । जिम प्रदेशी राजाई स्त्रीना विश्वास-लगइ विषम अवस्था पामी. तिम अनेरउ-इ नर पामइ । इति गाथार्थ । हिवइ विस्तर-अर्थ कथा-हंतउ जाणिवउ । ते प्रदेशी राजानी कथा कहीइ [४१. प्रदेशी राजानी कथा] श्वेतवती-नगरीइ प्रदेशी राजा राज्य करइ । तेहनी प्राणप्रिया सूर्यकांता राणी। अनइ चित्र नामा मंत्रीश्वर । ते चित्र एकदा राजकाज-भणी जितशत्रु राजा-समीपि श्रावस्ती-नगरीई गयउ। तिहां केशी गणधर देखी, प्रणाम करी, उपदेश सांभली, गृहधर्म पडिवजी. केशीकमारनइ आग्रह कीधउ, कहिउं, 'स्वामी ! एक वार श्वेतवती-नगरीइ विहार करिज्यो ।' इम कही गुरुनइ हा भणावी । पछइ चित्र महुतउ आपणइ नगरि आविउ ।। हिवइ जे प्रदेशी-राजा, ते महा-नास्तिक । पुण्य-पाप कांई न मानह । नित महुता-साथि विवाद करतउ जि रहा। इसिई पृथ्वी-मंडल-माहि विहार करतउ केशी आचार्य, श्वेतवतीनइ परसरि उद्यानवन,तेह-माहि आवी समोसर्या । एहवइ उद्यानपालकि आवी महतानइ वधामणी दीधी। तिसिहं चित्र महतउ इसिउं चींतवइ,'जु मुझ थकां माहरउ स्वामी नरकि जासिइ, तु ए वात युगती नही।' इम चोंतवी घोडानइ मिषांतरि प्रदेशी राजा वन-माहि लीधउ। तिहां घणा अश्व फेरिया। राजा थाकउ । पछह वृक्ष-मूलि जई वीसामउ लेवा लागउ। तेतलइ ते गुरुनी वाणी राजानइ कानि पडी । तिवारई प्रधान-प्रति कहइ, 'ए कउण बोलइ छइ ?' तिसिई प्रधानि कहिउं, 'स्वामी ! चालउ आपणपे जई सांभलोइ।' पछइ राजा दूकडउ आवी वाणी सांभलिवा लागउ । तिहां मधुर स्वरि १. B. ० हींडिसिद्धांत-हूंतउ । २. AB. फर्या, P. फेर्या, L. फिरया । २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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