Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१५६
मेरुसुन्दरगणि-विरचित
-भणी हूं पितानइ घर-थकी रहउं छउं । तु आज तूं दृष्टिईं करी दीठउ । हिवइ तूं माहरउ मनोरथ सफल करि ।' तिवारइ कुमार कहइ, 'ताहरउ मनोरथ अवसरइ सफल कीजिसिह । तूं चिंता म करे ।' पछइ मदनमंजरी हर्षित हूंतो घरि गई, अनइ कुमार असवार थई नगर-भणी आविवा लागउ ।
एतलइ नगर-माहि कोलाहल सांभलिउ । तिसिह विस्मित हूंत सन्मुख जु जोइ, तु हस्ती एक प्रचंड आवतउ दीठउ । ते देखी कुमार घोडा-थकी ऊतरी रभसपणइ हाथी-भणी धायट । जेतलइ हाथि उत्तराखणनी वीटली करी हाथी-भणी लांखी तेतलइ हाथी कुमार-सन्मुख धायउ । तिसिइ लोक हाहारख करिवा लागा । एतलइ कुमार इ विद्युतिकरण देई, पडतारनी परिर्इं हाथीइ चडिउ । तेतलइ भुवनपाल - राजाईं कुमार दीठउ । साहसक जाणी राजाइ कुमार डी आपण सम बइसारी कहिवा लागउ, 'वत्स ! गुणे करी यद्यपि कुल जाणीइ छइ, पणि तथापि आपण स्वरूप प्रकट करि ।' तिवारई कुमारि पवनचंद्र उपाध्याय - सन्मुख जोयउं । तिसिई तिणि उपाध्यायइ कुमारन सर्व वृत्तांत कहिउ । तिवारइ राजाईं कहिउं, 'एवडा पराक्रम राजबोज टाली अनेथि न हुई ।' पछइ कुमार वस्त्र अलंकारे सत्कारिउ ।
घणउं जोता रहउं, पणि चोर
इसिइ नगरीना लोक भेटि लेई आव्या, राजानइ वीनवई, 'स्वामिन ! तई राज पालतइ ताहरउं नगर कुणहि एक अदृष्ट चोरे मुसीइ छइ ।' ए वात सांभली राजाई तलार तेडावी आक्रोसपूर्वक कहिउं,' रे ! तुम्ह थका चोरे नगर संतापीइ, ते सिउं कारण ?" तिवारइ तलार कहइ, 'स्वामी ! चोर न जाणीइ सिद्ध छइ किंवा मंत्रवादी छइ ? अम्हे घण अम्हारी दृष्टि नावइ । ते सिउं कारण ?' तिवारइ राजा सचिंत जाणी कुमार कहइ, 'तात ! ए चिंता म करउ ए काम मुझनइ दिउ । ए आदेश अनेथि म देज्यो । जु सूंठिइ श्लेष्मा खाइ, तु रसायण कण लिई ?' पछइ राजाईं कुमारनई आदेस दीघउ । हिवइ कुमार पवनचंद्र उपाध्यायनी अनुज्ञाइ द्यूतकार, मालाकार, कलाल, वेश्या, कंदोईनां हाट-ईणे स्थानके चोर जोता छ दिन हूया । पछइ सातमइ दिनि कुमार चीतवइ, 'अजी तां चोरनी वात इ न सभिलीइ, अनइ दिन तु एक जि थाकइ छइ । माहरी प्रतिज्ञा पूरी किम यासि ?' इम चींतवी जेतलइ नगर - बाहरि नीकलिड, तेल परिव्राजक एक, कषायक वस्त्र पहिरो, ताम्राक्ष, विकराल आवत देखी, कुमार चीतवई, 'सही एह जिते चोर ।' एहवड निश्वउ करी तेहनइ प्रणाम कीघउ । तिवारई परिव्राजक प्छइ 'तू' कउण ?' कुमार कहइ, 'हूं विदेसी, दालिद्री - पीडित हूंतु घननइ काजि उरइ-परइ फिरउं छउं । 'तिवारई पाखंडी कहइ, 'मुझ साथि आवि, जिम ताहरउं दालिद्र गमाडउं । ' पछइ कुमार 'प्रमाण' इसिउं कही ऊभउ रहिउ ।
तेतलइ ते परिव्राजक पाछउ जई, प्रेतवन- माहि-हूता बि कुशि, चि खड्ग आणी, कुमारनइ साथि लेई, नगर-माहि आवि, विद्यानइ बलि नगरना लोकनां लोचन बांध्यां । पछइ कोई एक व्यवहारीयानइ घरि जई खात्र पाडिउं । तिहां अनेक रत्न आभरण बस्त्रे भरी 'पेई बि काढ़ी | बीजा इ घणां वानां काढ्यां । ते समस्त धन लेई कुमार सहित कुणिहि देवकुलि गयउ । तिहां घणा विदेशी सूता देखी परिब्राजकइ कुमारनइ कहिउँ, 'आपणपे इहां सूईसिइ । ' पछइ तिणि परिव्राजकि सर्व सुता जाणि, बिन्हइ पेईं ऊपाडी, सूनइ देवकुलि लेई मूंकी । आपणि पाखंड - लगइ आवी सूनउ । तिवारइ राजकु नगरि चींतत्रीउं, 'एहनउ वेसास न कीजइ ।' इम चींतवी आपणइ साथरइ पछेडी लांबी करी मूं की । पछइ आपणउं खड्ग सखायत करी वडना १. A. B. Pu. पेडी । २. A. B. Pu- पेडो, L. पटारी P पेटारी, C. पिटारी ।
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