Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 170
________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध १२९ कुरमातो नथी ।' जिम ए वात सांभली राज इं, तिम जि कामांकुर-मित्रइ कहिउँ जु, 'स्त्रीनइ शील किहां ? तिवारइ बीजउ ललितांग कहइ, 'ए वात साची । स्त्रीनह शील. नही ।' तेतलइ त्रीजइ रतिकेलि-मित्रइ कहिउं सही, इहां कोई संदेह नही ।' तिसिइं चउथउ अशोक कहइ, 'चालउ, परीक्षा कीजइ ।' पछइ राजाइ घणउं धन देई च्यारइ शीलवती-कन्हलि मोकल्या । हिव कामांकुरि आवी शीलवतीना आवास-कन्हलि नवउ घर मंडाविडं । तिहां सदाइ हावभाव नेपथ्य शीलवतीनइ देखाडइ । णि शीलवतीइ जाणिउ जु, 'माहरां शीलना भ्रंश-भणी एतला वानां करइ छई।' पछइ च्यार इ मित्र उपाय चीतविवा लागा। हिव अनेरइ दिवसि अशोकिइ दूती मोकलीनइ कहाविउं, 'हे भद्रि ! ताहरउ भरि तउ देशांतर गयउ छइ । तूं यौवननई फल कांई न लिइ ?' तिवारइ शीलवती कहइ, 'कुलस्त्रीनई ए वात युगती नही । अनइ कदापि जु ए वात कीजइ तु लोभ-पाखइ न कीजइ ।' इसिई कहिइ हूंतइ अशोकि वली दासी मोकली पूछाविउ जु, 'तू केतलडं धन मागइ छइ ?' तिवारइ शीलवती कहइ, 'हूं लाख टंका मागउं । तेह-माहि अर्ध पहिलङ आपउ, अनइ तुम्हे पांचमइ दिहाडइ आविज्यो तहीई अर्ध लेतां आविज्यो ।' इणि वचनि अशोक हर्षिउ हंतु दूती-हाथि अर्धउ लाख देई शीलवतीनइ माकलिउ। हिव शीलवतीइ उरडा-मादि छानउ एक कूउ खणाविउ, अनइ ते-ऊपरि पल्यंक एक वाण-पाटी-रहित उत्तरपटिइ ढांकी मूकिउ छइ । इसिइ पांचमइ दिनि अशोक पंचास सहस्र लेई, तांबूल भक्षण करतउ, जगत्र सघलउँ त्रिण समान गणत, जेतलइ पल्यंकि जई बइठउ, तेतलइ घाइसिंउ कूआ-माहि पडिउ । पछइ शीलवतीइ ते लाख टंका लेई घर-माहि मूक्या, अनइ तेहनइ शरावलइ 'दोरडउ बांधी, भात-पाणी घाली, कूआ-माहि मू कावइ । हिवइ ते नारकीनी परिई दुःख अनुभविवा लागउ । इन कूआ-माहि रहितां अशोकनइ एक मास अतिक्रमिउ । एहवइ वली ललितांग मुहतउ द्रव्य लेई आविउ । ते पणि शीलवतीई एक लक्ष द्रव्य लेई आ-माहि घातिउ। हिवइ वली त्रीजउ कामांकुर धन लेई आविउ। ते पणि शीलवतीई लाख टंका लेई आमाहि घातिउ | वली च उथ र रति केटि आविउ । तेड्न पणि तेह जिहा: शीलवतीइ कीघउ । इम च्यारि महा दुख भोगविवा लागा । इसिइ राजा वयरी जीपी आपणइ नगरि पाछ । आविउ । पछइ ते च्यारि इ मित्र महा दुखी हूंता शीलवतीनइ कहई, 'जे अणविमासिउ काज करइ, ते अम्हारी परिई दुख पामइ । हिवइ अम्हनइ नरग-हंता काढ ।' तिवारई शीलवती कहइ, 'जउ माहर वचन मानउ, तु काढउं।' तिसिई ते कहई, 'जि कोइ ताहरइ कर्तव्य छई, तेहन आदेश दइ । पणि एक वार कुआ-हंता काढि।' वलतुं शीलवती कहइ, 'जिवारइ हूं बोलावलं तिवारई तुम्हे च्यारि अस्खलित बोलिज्यो ।' तीणेचिहए ए वचन मांनिउं । इम तेहनइ सघली सीख देई, पछइ अजितसेन-पतिनइं सर्व वात जणावी, सपरिवार राजा आणइ घरि जिमवा निहुतरिउ। तेतलइ शीलवतीई सर्व रसवती नीपाई, प्रच्छन्न करी मंकी । तिसिइ राजा आवी जि पवा बइठउ। पणि भोजननी सामग्री कांई न देखइ । तिवारइ राजा कहइ. 'अम्हे किस्या ऊपरि निहुतरिया हूंता ?' तेतलइ शीलवती मूर्तिमंत बारणा आवी, फूले पूजी, कहिवा लागी, 'अहो यशो ! सघली रसवती मजूद करउ । आज आपणइ परि राजा जिमवा आविउ छइ ।' तिसिइ ते कृपा-माहि-थका च्यारइ कहई. 'अम्हे रसवती मजद , १. Pu. दोरउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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