Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 137
________________ ९६ मेरुसुन्दरगणि विरचित मोकली, चंद्रराजानइ कहाविउ जु, 'ए माहरइ बहिन । एहनइ मइं सासरवासउ करी मोकली छइ ।' पछइ चंद्रराजा शीलधर्मनउ महात्म्य जाणी प्रतिबूधउ हूंतउ, अवसरि पुत्रनइ राज देई, रतिसुंदरी प्रिया सहित दोशा लेई, चारित्र पाली, बेहू मोक्षि पहुतां । इति श्री शीलोपदेशमाला-बालाविवोधे रतिसुंदरीनी कथा ॥२८॥ इम वली शील-महात्म्य-लगइ स्त्रीनां नाम पापक्षयकारक हुई ते कहा - रिसिदत्ता दवदती कमला य कलावई विमलसीला । मामांगहण-जलेण वि कलिमल-पक्खालणं कुणह ॥ ५५ व्याख्या :-- ऋषिदत्ता १, देवदेती २, कमला ३, अनइ कलावती ४- ए च्यारिइ महासती शीलवंति हुई । पणि ते केहवी छ ? विमल-निर्मल परीक्षा-सहित शीलगुण जेहनइ छ। । इसी च्यार इ सती। अहो लोको! तेहन नाम-ग्रहण-रूपीइ जल = पाणीइ करी आपणउं कलिमल= अनंता भवनां पापरूप मल, तेहनउँ पखालिव करउ । एतलइ गाथानउ अर्थ इउ । हिव विस्तरार्थ कथा हूंतउ जाणिवउ । तिहां चिहुं सती-माहि पहिलउ ऋषिदत्तानी कथा कहीइ - [२९. ऋषिदत्ता-कथा] इणइ मध्यदेशि रथमर्दन नगरि, हेमरथ राजा । तेहनी वल्लभा सुयशा । तेहनु पुत्र कनकरथकुमार सुखिइ वाधा छइ । इसिइ कावेरीनगरीइ सुंदरपाणि राजा, तेहनी प्रिया वासुला । तेहनी पुत्री रुक्मिणी यौवनावस्थाई आवी। तिवारई कनकरथकुमारनई दीधी। पछइ भलइ दिवसि पाणिग्रहण करिवा-भणी पितानु आदेश लही कुमार चालिउ । हिव मार्गि सीमाल भूषालनि वशि करतउ महा एक वन गहन, तेह-माहि आविउ, जिहां सूर्य ऊगिउ न दीसह। तिसिई कुमारई पंथ जोवा-भणी गमे गमे जण मोकल्या हुंता, ते आवी कुमारनइ प्रणाम करी कहिवा लागा, 'स्वामी ! तुम्हारउ आदेस पामी दूरि भूमिकाई गया, तेतलइ तलाव एक अपूर्व दीठउं । अम्हे तेहनइ कांठइ आग्या । तिसिई वननइ आंतरइ कन्या एक वृक्षनइ मूलि हींचती दोठी । जेतलइ अम्हे आघेरा आव्या तेतलइ ते दूरि नाठो, जिम काइ उलखी न सकइ । खेचरीनी परिई वन-माही लुकी रही। पछा अम्हे घण इवन-माहि जोई, पणि किहां इ दीठी नही। जिम चित्रकवेलि दालिट्री न देखइ, तिम अम्हे ते न दीठी।' ए वात सांभली कुमार सहर्ष हूंतउ तेह जि जणनइ साथिई लेई तीणइ मार्गिइ कुमार चालिउ । तिहां पंथ अवगाहा, वन गहन सोधतां, कुरंगीनी परिई ते कन्या कुमारि दीठी । तिवारई कुमार चौतवइ, 'ए देवांगना मुनिना शाप-लगइ पडी घटइ । अन्यथा एहवी स्त्री इहां किहां ? जिम मरुमंडलि कल्पवेलि नही, तिम ए स्त्री-रत्न पृथ्वी-माहि नही।' इम तेहनइ रूदिई मोहिउ हूंत कुमार सैन्य-सहित आघेरउ चालिउ । तेतलई कटकनउ कोलाहल सांभली कन्या नाठी। पछइ कुमारि कटक सघलउं इ तलावनी पालिइ ऊतारिउ । अनइ आपणि कामनउ वाहिउ कन्या जोवा-भणी वन-माहि फिरवा लागउ। पणि कन्यानइ न देखइ । तिसिइ आगलि 'उत्तुंगतोरण प्रासाद एक दीठउ। पछइ कुमार चौतवइ, 'सही ए कन्या एह-माहि घटइ।' इम चौतवी ते प्रासाद-माहि कुमार पाठउ । तिहां श्री-आदिनाथनी प्रतिमा दीठी। आपणपउं धन्य मानतड १.K,Pu..उत्तंग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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