Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 7 नवम्बर २०१४ किया। न जाने कितना-कितना तुम्हारा आहार किया । परतु उस माधुर्य का स्वाद मेरे शब्दों में आज तक नही आया। कडवापन ही रहा। मिठाई खा कर के भी मिठास नही आई। फिर हम रोज खाते हैं। उससे भी क्षमापना करिए । तुम्हारे परिचय से मुझमें परिवर्तन क्यों नहीं आया? संकल्प करिये कि ऐसा माधुर्य मेरे शब्दों मे आना चाहिए। स्तोकम्, मधुरम्, और निपुणम् शब्द के जो गुण चल रहे हैं। जिसका वर्णन चल रहा है कि कैसे बोलना चाहिए। कैसी मधुरता आनी चाहिए । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निपुणम् जब आप बोलते हैं तो उस कार्य के अंदर उस वाणी के व्यापार के अंदर, आपकी बौद्धिक कुशलता का परिचय मिलना चाहिए, चालबाजी का नहीं, चापलूसी का नहीं । बुद्धि पूर्वक, आत्मा के अनुकूल कुछ बौद्धिक कुशलता का लोगों को परिचय मिलना चाहिए। उसका उपयोग मैं आत्म हित में करूँ | ताकि कार्य के क्लेश से, क्लेश के आगमन से, यह आत्मा मुक्त बने । बुद्धि का उपयोग इस प्रकार से किया जाए । अन्तर जगत में मेरी आत्मा के गुण लूटे न जाएं। हमने कभी इस प्रकार से विचार नहीं किया, जो होशियार व्यक्ति को करना चाहिए। बाहर लुटने से बचने की हम बहुत कोशिश करते हैं । परन्तु अन्दर लुटने से बचने के लिए, हमने आज तक किसी उपाय पर विचार नहीं किया । * ܀ ܀ ज्ञानमंदिरना आगामी प्रकाशनो १. समरादित्य महाकथा, भाग १ - ९, भाषा हिन्दी १. शोध प्रतिशोध, २. द्वेष- अद्वेष विश्वासघात ४. वैर-विका ५. संबंध संघर्ष ७. प्रद्वेष - प्रशम ८. चल-अचल २. जैन गच्छ मत प्रबंध ३. ६. स्नेह - संदेह ९. आक्रोश- आलोक ३. रास पद्माकर भाग - ३ ४. तपागच्छ गुर्वावली- सागर स्मरणावली For Private and Personal Use Only

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