Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 63 नवम्बर २०१४ हवे शुं थाय? छतां ज्यारे त्यांथी मुनिओए विहार कर्यो त्यारे जयकुमारने मारवा माटे माराओ मोकल्या पण विना कारण आवुं पापाचरण करवुं ए सर्वथा अकरणीय छे एम समजीने मार्या वगर ज माराओए राजाने मारी नाव्यानुं कहीने संतोष पमाड्यो. वर्षो गयां ने एकदा जयकुमार मुनि काकंदी पधार्या. लोको खुश थया ने विजयकुमार फरी बळवा लाग्यो. तेणे माराओने बोलाव्या ने पूछ्यु के तमे तो तेने मारी नाख्यो हतो ने आ जीवतो क्यांथी आव्यो? तेओए खोटे खोटं कह्युं के अमने कांई खबर न पडी के कोण जयकुमार छे? अमे तो गमे ते साधुने जयकुमार मानीने हण्यो हतो. साधु तो बधा सरखा लागता हता. पछी विजयकुमार जयकुमार मुनि पासे जईने वांदी धर्मश्रवण करीने तेओ क्यां रहे छे ईत्यादि सर्व ध्यानमा राखीने आवे छे. रात्रिए एकलो जईने जयकुमार मुनिने तलवारथी हणे छे. बीजा मुनिओ तेने ओळखी जाय छे ने सकारे विहार करी जाय छे. काळधर्म पामीने जयकुमार आनत देवलोके १८ सागरोपमना आयुष्यवाळा देव थाय छे. दुष्ट परिणामे मरीने विजयकुमार पंकप्रभा नारकीमां दस सागरोपमनी स्थितिवाळो घोर नारक थाय छे. आ पांचमां भवमां जय-विजयनी कथा तो आम तद्दन नानी छे पण सनत्कुमार आचार्यश्रीनुं आत्मवृत्त विस्तारथी छे. साहित्यशास्त्रना अनेक प्रकारो समजावतुं अने कथानो रस जमावतुं ए वृत्त अनेक रसमां तरबोळ करे छे. कामनी परवशता, युवतिवर्णन सात्त्विक आत्माओनी सात्त्विकता, कर्मजनित सुखद अने दुःखद प्रसंगोनी परंपरा, शृंगार, अद्भुत, वीर, करुण रसो अंगांगीभाव धारण करता करता छेवटे शांत रसमां एवी सुन्दर रीते पर्यवसान पाम्या छे के जेनुं चित्रण चित्त फलक उपर चिरस्थायी बनी जाय छे. - स्वल्प पण दुष्कृत केवा कटुक विपाकने आपे छे ए वात आ वृत्त जाण्या पछी दृढ थई जाय छे. आ विभागमां जाणे सनत्कुमाराचार्य - नायक रूपे आवी गया होय एम क्षणभर लाग्या करे छे. छठ्ठो भव: जयविजया स सहोयर, जं भणियं तं गयमियाणिं । वोच्छामि पुव्वविहियं, घरणो लच्छी य पड़भज्जा ॥ १ ॥ गाथाथी पूर्वानुसंधान करीने कथा आगळ वधे छे. For Private and Personal Use Only

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