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SHRUTSAGAR
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NOVEMBER-2014
मुनि शक्रदेवलोकमां उत्पन्न थाय छे. पाछळथी धनश्री पकडाय छे ने नन्दक नासी छूटे छे. बधी वात फूटे छे, स्त्रीने अवध्य जाणीने हांकी काढे छे. जतां जतां सर्पदंश थाय छेने मरीने वालुकाप्रभा नारकीमां जाय छे.
पांचमो भव:
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आ विभागमां प्रासंगिक एक पुरोहितना पूर्वभवोनुं वर्णन अने यशोधर आचार्यनुं चरित्र घणुं ज रोचक अने वैराग्यरसथी भरपूर छे. यशोधरचरित्र तो जुदुं स्वतंत्र पण प्रसिद्ध छे. कथावस्तु अने वर्णन शैली एवो तादात्म्यभाव जन्मावे छे के तेना संस्कारो आत्मामां चिरकाल सुधी स्थिर रहे. आ भव वांचवानी शरूआत न करी होय त्यां सुधी ठीक पण शरू कर्या पछी तेनी पकड एवी मजबूत बने छे के ते पूर्ण थाय त्यारे ज तेमांथी मुक्त थवाय छे.
नीचेनी गाथाथी पूर्वनुं अनुसंधान करीने कथा आगळ वधे छे.
वक्खायं जं भणियं धणधणसिरिमो य एत्थ पड़भज्जा । जयविजयाय सहोयर, एत्तो एयं पवक्खामि ॥१॥
कंदी नामे नगरी छे. सूरतेज नामे राजा राज्य करे छे. लीलावती पट्टराणी छे. धननो आत्मा ते राजाने त्यां जन्मे ले छे. जयकुमार एवं नाम स्थापन करवामां आवे छे. अनेक कळाओ शीखे छे तेमां धर्मकळा तो तेने स्वाभाविक वरी छे. धनश्रीनो जीव परिभ्रमण करतां कर्मसंयोगे जयकुमारना भाई तरीके जन्म ले छे ने तेनुं नाम विजयकुमार राखवामां आवे छे.
राजाना मरण पाम्या बाद राजा तरीके जयकुमारनो अभिषेक करवामां आवे छे. आ प्रसंग विजयकुमारना स्वाभाविक द्वेषमां अभिवृद्धि करे छे. अने ते राज्यना प्रतिपक्षी माणसो साथेनो समागम कर्या करे छे. महाराणी लीलावती जयकुमारने कहे छे के विजयकुमारने संतोष थाय एवं कांइक करो, एटले राजा जयकुमार आत्मकल्याणमां प्रबल अंतरायभूत राज्य छे एम जे स्वभावथी ज माने छे तेने प्रसंग मळे छे एटले स्वयं पोते ज विजयकुमारने बोलावीने तेनो राज्याभिषेक करे छे, माता अने प्रधान पुरुष सहित जयकुमार सनत्कुमार आचार्य महाराज पासे संयम स्वीकारे
छे.
जेने सतत मारी नाखवानी इच्छा राखतो हतो ते आम सुंदर रीते दीक्षा लईने लोकचाहना साथे जीवतो चाल्यो जाय छे ए वात विजयकुमारने रुचती नथी पण
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