Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR __70 NOVEMBER-2014 वेलन्धर देव सपरिवार त्यां आवे छे ने अग्नि होलवी नांखीने मुनिना शरीर उपरनां चीथरां दूर करे छे. राजा वगेरे त्यां आवी चडे छे. वातनी जाण थाय छे. गिरिषेण पण हृदयमां शरमाय छे. पोताना अपकृत्य माटे, मुनिनी महानुभावता तेना हृदय उपर असर करी जाय छे ने ते चाल्यो जाय छे. समरादित्य केवली धर्मदेशना आपे छे. नरक-गतिनां दुःखो अने देवलोकनां सुखो केवांछे ते समजावे छे ने पछी मोक्षनां सुखो केवां अनुपमेय छे तेनु वर्णन भिल्ल अने नगर सुखना उपनयवाळा दृष्टांतथी वर्णवे छे. छेवटे वेलन्धर देव आ उपसर्गर्नु कारण पूछे छे. त्यारे केवली भगवंत सर्व संबंध कहे छे. गिरिषेणनो आत्मा असंख्याता पुद्गल परावर्तो पछी सम्यक्त्व पामशे एम जणावे छे. अत्यारे तो तेणे गुण पक्षपात बीज प्राप्त कर्यु छे ते बीजक तेनी सम्यक्त्व प्राप्तिमां परंपराए कारणभूत बनशे. समरादित्य केवली भगवंत त्यांथी विहार करी जाय छे. गिरिषेण भूडे हाले मरीने सातमी नरके उत्कृष्ट आयुष्यवाळा नारक तरीके उपजे छे ने शैलेशीकरण करी बाकीनां चार अघाती कर्मनो अंत करीने समरादित्य केवली भगवंत सिद्धिगतिना शाश्वत सुखना भोगी बने छे. कर्मना सकंजामांसपडायेलो एक आत्मा अनंतकाळ संसारमा भमे छे अने कर्मनी सामे झझूमतो अन्य आत्मा उत्तरोत्तर प्रशमभावमा आगळ वधतो अनंत संसारनो अंत साधी सिद्धि मेळवे छे ते आ चरित्रमा स्पष्ट छे. चरित्रकार पूज्य हरिभद्रसूरिजी महाराज पण ग्रन्थ समाप्ति करता आशीर्वाद आपे छे के जं विरइऊण पुण्णं, महाणुभावचरियं मए पत्त। तेण इहं भवविरहो, होउ सया भवियलोयस्स॥ महानुभाव (समरादित्य) नुं आ चरित्र रचीने में जे पुण्य प्राप्त कर्यु होय तेथी भव्य लोकोने सदा भवनो विरह थाओ. आम उपसंहारमा विरह पद के जे आ सर्व रचनामां बीजभूत बन्यु छे ते पण सुन्दर रीते योज्यु छे. आपणे पण आवां चरिलो द्वारा भवविरहने इच्छीए. कथामांथी केटलीक समजाती वातो : आ समराईच्चकहा ए एक काव्य ग्रन्थ होवा छतां तेमाथी प्रासंगिक अनेक विषयो जाणवा मळे छे. जैन दर्शननुं तत्त्वज्ञान स्थळे स्थळे मुनिवरोनी देशनामा For Private and Personal Use Only

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