Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 71 श्रुतसागर नवम्बर-२०१४ घणु ज आवे छे. व्यवहारना अने मुनि जीवनना आचारो अने प्रक्रिया पण आ कथा व्यवस्थित समजावे छे. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन मुनिओमां धर्मलाभ ए प्रमाणे आशीर्वचन बोलवानो वर्तमानमां पण व्यवस्थित चालु व्यवहार छे. आ कथामां सेंकडो वखत मुनिओए ए आशीर्वचन उच्चार्याना उल्लेखो छे एटले वर्तमानमा प्रचलित आशीर्वचन श्री हरिभद्रसूरिजी म. ना समयमां पण प्रचलित हतुं ए निर्विवाद छे अने तेओश्रीना उल्लेख प्रमाणे तो आशीर्वचन ज सनातन रूढ छे, अने एम ज होवु जोईए एम बुद्धिने पण समजाय छे. आ आशीर्वचन सिवाय मुनिना मुखे शोभे एवं निर्दोष आशीर्वचन अन्य कल्पी शकातुं नथी. कथाना अनुयायी अने प्रशस्ति आ कथाने अनुसारे छूटक छूटक घणु लखायुं छे. श्रीप्रद्युम्नसूरिजी महाराजे 'समरादित्यसंक्षेप' श्लोकबद्ध संस्कृत भाषामां लखेल छे. ए ग्रन्थ पण संस्कृत काव्य ग्रन्थोमा प्रधान स्थाने मूकी शकाय एटलुं सामर्थ्य धरावे छे. पं. पद्मविजयजी महाराजे 'श्रीसमरादित्यरास गुजरातीमां पद्यबंध लखीने प्राकृत-संस्कृतना अणजाण आत्माओ उपर अनुपम उपकार कर्यो छे. रासनी रचना पण पूर्ण सामर्थ्यवाळी छे. प्रशमरस नितरती आ,कथा ज एवी छे के जे एम ने एम असर करे तो पछी समर्थ व्यक्तिओने हाथे लखायेल केम न करे? ए सिवाय गुजराती भाषामां गद्यरूपे पण आ कथानुं पुस्तक प्रकट थयेल छे. वेरनो विपाक नामे ट्रंकमां पण आ चरित्र गुजरातीमां प्रसिद्ध थयेल छे. ढूंका रासरूपे पण रचना थई छे. आ कथानी प्रशस्ति गातां कविवर्य धनपाले 'तिलकमंजरी' मां ए रम्य सूक्त मूक्युं छे, ते आ प्रमाणे छेः निरोर्बु पार्यते केन, समरादित्यजन्मनः । प्रशमस्य वशीभूतं, समरादित्यजन्मनः ।। समरादित्यथी उत्पन्न थयेल प्रशमने अधीन थयेलु ने युद्ध वगेरेने त्यजतुं मन कोना वडे रोकी शकाय? अर्थात न ज रोकी शकाय. कवि धनपालनु उपरोक्त कवन मननपूर्वक आ कथा वांच्या पछी सर्वथा सत्य छे एम सहृदयने लाग्या वगर रहेतुं नथी. सूर्य-चन्द्रना प्रकाश सुधी आ कथा अंतरने अजवाळती रहे एज अभिलाषा. (जैन सत्यप्रकाश, वर्ष-१८ मांथी साभार.) For Private and Personal Use Only

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