Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 78 NOVEMBER-2014 SHRUTSAGAR नयनाम्बराश्वभू(२०७१)वर्षे, मार्गोज्ज्वलदशमी विधौ। प्रसङ्गो पूर्ण सञ्जातः, पार्श्व-पद्मप्रसादतः ॥११॥ मल्लिमहिसमुद्भूतः, झोपाख्यो द्विजनन्दनः । सञ्जयेन कृतं भव्यं, सूरिपद शुभाष्टकम् ॥१२॥ ॥ इति पञ्चाचार्यपदप्रदानाष्टकं सम्पूर्णम् ॥ सूरिपद महात्म्य तित्थयरसमो सूरि, सम्मं जो जिणमयं पयासेई। आणाइ अइक्कतो, सो कापुरिसो न सप्पुरिसो॥१३॥ जे सम्यग् रीते जिन मतने प्रकाशे छे ए आचार्य तीर्थंकर समान छे. आज्ञानो अतिक्रम करनारने कुत्सित पुरुष जाणवो, पण सत्पुरुष न जाणवो. (संबोध सित्तरी) पवयणरयणनिहाणा, सूरिणो जत्थ नायगा भणिया। संपइ सव्वं धम्म, तयहिट्ठाणं जओ भणियं ॥४८॥ जे धर्ममां जिनोक्त शास्त्ररूप रत्नोना निधान एवा आचार्यने नायक कह्या छे ते सघळोय धर्म आचार्यना आधारवाळो छे. कइयावि जिणवरिंदा, पत्ता अयरामरं पहं दाउं । आयरिएहिं पवयणं, धारिज्जइ संपयं सयलं ।।८९॥ कोई काळे जिनेश्वरो मोक्षमार्ग भव्य जीवोने आपीने मोक्षने पाम्या छे वर्तमानकाळमां सकल प्रवचन आचार्योथी धारण कराय (संबोध प्रकरण) For Private and Personal Use Only

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