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SHRUTSAGAR
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NOVEMBER-2014
छेवटे पण वानमंतर उपसर्ग करे छे ने नरकायु बांधीने अति रौद्रध्याने मरीने महातमा नामे सातमी नारकीमां ३३ सागरना आयुष्यवाळो नारक थाय छे. शुभध्यान करी आयुष्य समाप्त करीने मुनि गुणचंद्र सार्थसिद्ध विमानमा ३३ सागरोपम आयुः वाळा देव थाय छे.
आ विभागमां प्रहेलिका आदि कूटकाव्यनी रचना रसमय अने आकर्षक छे. वचमां थोडो समय शृंगाररसे जाणे पोतानुं साम्राज्य जमाव्यं होय एम लागे छे. आचार्य विजयधर्मनुं कथानक गाथाबद्ध प्रवाहमां गुंथायुं छे.
साध्वीजीनी कथा पण भाववाही छे. ते ते कथाओनी खूबी एवी छे के ज्यारे तेनुं वाचन चालतुं हो त्यारे वाचक तन्मय बनीने रसास्वाद माणतो होय एवो अनुभव थाय छे. तेने वाचक भिन्न छे एवी वृत्तिनुं विस्मरण थई जाय छे. काव्यनी खरी खूबी पण मां ज छे.
नवमो भव:
गुणचंद-वाणमंतर, जं भणियमिहासि तं गयमियाणिं । वोच्छामि जमिह सेसं, गुरूवएसाणुसारेणं ॥१॥
उज्जयिनी नगरी छे. पुरुषसिंह राजा छे. सुन्दरी महाराणी छे. गुणचंद्रनो आत्मा महाराणीनी कुक्षिए जन्म ले छे. आ जन्म लेवानुं ते आत्माने छेल्लुं छे. राजपुलना जन्मोचित सर्व कार्यो उत्तम प्रकारे करे छे ने पुत्रनुं नाम 'समरादित्य' राखवामां आवे छे.
वानमंतरनो जीव नरकमांथी नीकळी परिभ्रमण करतो ग्रन्थिकने त्यां यक्षदेवानी कुक्षिए पुत्रपणे जन्मे छे ने 'गिरिषेण' एवं तेनुं नाम पाडवामां आवे छे. अनेक भवोथी आत्माने संस्कारित करता समरादित्यना आत्मानुं वलण आ भवमां सतत धर्म तरफ ज रहे छे. संसारनी के रंगरागनी वृत्ति के वात तेने जरी पण रुचती नथी. राजा वगेरे मोहवश ईच्छे छे के कुमार भोगविलासमां रक्तने सक्त बने तो सारं.
ते माटे अशोक वगेरे एवा मित्रोने पण कही राखे छे के तमे कुमारनी चित्तवृत्तिने मोहित करो, परंतु ते मित्रो पण कुमारना परिचयथी ने प्रभावथी ऊलटा तेना मतमां मळी जाय छे. राजा प्रसंगे प्रसंगे घणी घणी मोहक साधनसामग्री कुमार माटे योजे छे पण तेमां तेनुं मन ललचातुं नथी ते तो वैराग्य तरफ वधु ने वधु खेंचातो जाय छे. अहीं कुमारना वर्तनमांखरेखर देखाई आवे छे के
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