Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१४ परिवार सहित प्रव्रज्या स्वीकारे छे.
विहार करता कोल्लाक गामे राते प्रतिमा ध्याने सेनमुनि रह्या छे त्यां राज्यभ्रष्ट विषेणकुमार पोताना केटलाएक दुष्ट मित्रो सहित आवे छे, ने सेनमुनिने मारवा उद्यत थाय छे पण क्षेत्रदेवता तेने वारे छे ने छेवटे त्यांथी दूर अवग्रह बहार मूकी आवे छे.
भिल्लोने हाथे भयंकर अटवीमां भुडे हाल मरीने विषेण बावीस सागरना आयुवाळो तमप्रभा नारकीमां नारक थाय छे, ने सेनमुनि अनशन करी नवमे अवयके लीस सागरना आयुष्यवाळा देव थाय छे.
आ विभागमां एक साध्वीजीनुं तथा हरिषेण आचार्यश्रीनुं कथानक ढूंकमां छतां सचोट छे. कोईना पर आळ चडाववानां परिणाम केवां सहन करवां पडे छे ते अने नाना अपराधनो दंड केवो विचित्र मळे छे तेनो चितार ए कथानको करावे छे.
आ विभागमां नैमित्तिकना ज्ञान- सामर्थ्य, वृक्षो अने तीर्थोना प्रभावो, मणिर्नु माहात्म्य, योगीओना आश्रमो वगेरे वर्णन आकर्षक छे. नैसर्गिक अने प्रासंगिक वर्णनोना मिश्रणथी आ विभागनी कथा जाणे कुदरतने चितरती न होय एवो भाव जगवती आगळ ने आगळ लई जाय छे. आठमो भव:
वक्खायं जं भणियं, सेण-विसेणा उपित्तियसुयत्ति। गुणचंद-वाणमंतर, एत्तो एवं पवक्खामि ॥१॥ आ पूर्वानुसंधान करती आ गाथा छे.
अयोध्या नगरीमा मैत्रीबल राजाने घेर पद्मावती महाराणीनी कुक्षिए सेननो आत्मा अवतरे छे, अने तेनुं गुणचंद्र एवं नाम राखवामां आवे छे. सकल कलाकलापनो अभ्यास करवा छतां कुमार गुणचंद्रनुं चित्त स्वभावतः विषयविमुख रहे छे. सतत धर्मपोषक वृत्ति-प्रवृत्ति ने वात ए आचरे छे.
विषेणनो जीव विद्याधरोनी श्रेणिमां जन्म ले छे, ते वानमंतर नामे प्रसिद्ध थाय छे. कुमारने उपद्रव आपवा वाणमंतर विद्याधर घणा प्रयत्नो करे छे पण कुमारना पुण्य पासे तेनु कांई चालतुं नथी.
कुमार गुणचंद्रना विवाह रत्नवती साथे थाय छे पछी पण प्रसंगे प्रसंगे विद्याधर वानमंतर कुमारनुं बूरं करवाना सतत प्रयत्नो कर्या करे छे. सतत वधता पुण्योदयने भोगवतो कुमार राजा थाय छे ने पृथ्वीनु न्यायपुरस्सर परिपालन करीने संयम स्वीकारे छे.
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