Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर नवम्बर-२०१४ तेनो भोग बने छे. लक्ष्मी सुवदन साथे भळी गई छे, ते राजी थाय छे. त्यांथी धरणने पूर्व परिचित विद्याधर छोडावे छे. सारसंपत्ति आपीने ईच्छित स्थळे पहोंचाडे छे. सुवदन अने लक्ष्मी त्यां आवे छे अने तेओ त्यां धरणने जुए छे. ते बन्नेना पेटमां कळकळ्तुं तेल रेडाय छे छतां ते पापीओ पाप छोडता नथी. राजदरबारे वात पहोंचे छे. छेवटे बधु खुल्लु पडे छे. धरण बन्नेने जीवता जवा दे छे. ___ अहीं धरण उपर टोप्य शेठ सारी सज्जनता दाखवे छे. छेवटे धरण पोताने गाम आवे छे. संसारनी अनेक विचित्रताओ जोईने तेनुं मन स्वाभाविक रीते संवेग तरफ वळे छे. तेमां अर्हद्दत्त आचार्यश्रीनो संयोग सांपडे छे. तेमनी वात सांभळीने तो तेना संवेगनी भूमिका नवपल्लवित बने छ ने तेमनी पासे अनेक मित्रो साथे संयम ले छे. पछी विहार करता करता धरण मुनि ताम्रलिप्ती नगरीए जाय छे. त्यां सुवदन अने लक्ष्मी रह्यां छे. लक्ष्मी धरण मुनिने जुए छे ने तेनो विद्वेष प्रज्वली ऊठे छे, ते मुनि उपर चोरीनु आळ चडावे छे. नगररक्षको मुनिने पकडे छे, मुनि मौन रहे छे, मुनिने शूळीए चडावे छे. शूळी तूटी पडे छे, राजा वगेरे त्यां आवे छे, लक्ष्मी नासी छूटे छे सुवदन बधी वात करे छे. पापनो क्षय अने धर्मनो जय थाय छे. सुवदन दीक्षा ले छे. संयमनु यथाविधि परिपालन करता धरण मुनि काळधर्म पामीने आरण देवलोके एकवीस सागरोपम स्थितिवाळा देव थाय छे. बूरे हाले मरीने लक्ष्मी धूमप्रभा नारकीमा १७ सागरोपमना लांबा आयुष्यवाळा नारक तरीके उपजे छे. ___ आ प्रसंग जरा विस्तारथी जणाव्यो छे पण आ कथा आ विभागमा एटली खीली छे के विस्तार पण घणो ढूंको होय एम लागे छे. आचार्य अर्हददत्तनुं चरित्र तो घणुं ज रम्य अने भवनिर्वेदनी भारोभार महत्ता समजावतुं रसमय बन्यु छे. तेमां आवतां रूपको तो वांच्या पछी मनमां रमी रहे छे. संसार- खेंचाण केटलुं छे तेमांथी छुटवू केटलुं मुश्केल छे तेनो चितार आ चरित्र करावे छे. सज्जनोनी सज्जनता अने दुर्जनोनी दुर्जनता केवी होय छे ते आ विभागमां जणावी छे. आपत्तिमां आवेलो सज्जन अधिक सुजनता दाखवे छे. अग्निमां पडेल कालागुरु धूप अपूर्व सुगन्ध प्रसरावे छे. तेनो साक्षात्कार धरण करावे छे: आपद्गतः खलु महाशयचक्रवर्ती, विस्तारयत्यकृतपूर्वमुदारभावम्। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84