Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
NOVEMBER-2014 दिवस चाल्यो गयो, तपस्वी आवीने पाछा फर्यानी राजाने जाण थतां तेना पश्चात्तापनो पार रहेतो नथी. फरीथी आश्रमे जाय छे.
पारावार प्रयत्ने अग्निशर्माने मनावीने त्रीजी वखतनुं पारणुं पोताने त्यां करवानुं नक्की करीने आवे छे. भवितव्यताने बळे लीजी वखत पारणाने ज दिवसे क्षण क्षणनी काळजी राखवा छतां राजाना नगर उपर शत्रु चडी आवे छे तेनी सामे युद्ध करवा राजाने जवु पडे छे. आव्या एवा तपसी पाछा फरे छे. अहीं बाजी बगडे छे. वेरनु बीज अग्निशर्माना आत्मामां ववाय छे. पोताना भूतकाळने याद करतो अग्निशर्मा राजा प्रत्ये खूबज क्रोधे भराय छे ने भवोभव हुं आ वेरनो बदलो लउं एवा संकल्पपूर्वक यावज्जीव आहारनो त्याग करे छे.
राजा अने तापस वर्ग एमने खूब ज समजावे छे पण हवे कांई वळतुं नथी. राजा प्रशम भाव धारण करीने आत्माने वाळे छे. पोताना वर्तन माटे तेने घणुज लागी आवे छे. आ प्रथम भवथी ज बन्ने मार्गो जुदा पडी जाय छे. एक प्रशम भावमां आगळ वधे छे ने अन्य विषम भावमा प्रगति साधतो जाय छे. आ विभागमां श्रीविजयसेन आचार्य महाराज, कथानक सुन्दर वैराग्यजनक आवे छे. आश्रमो केवा होय, तापसो केवा होय तेनुं हृदयंगम वर्णन पण विशिष्ट रीते अहीं आप्यु छे. सम्यक्त्वथी आरंभीने श्रावकधर्म साधुधर्म यावत् क्षपकश्रेणिथी मांडीने केवळज्ञान प्राप्ति सुधी- यथाक्रम वर्णन गुरुमहाराजना उपदेशमां छे. भाषाप्रवाह एकसरखो आकर्षक छे. आगळ आगळ वांचवानुं मन थयाज करे. छेवटे गुणसेने भावेली भावना घणी ज असरकारक छे. आराधना माटे उपयोगी छे. ए रीते प्रथम भव पूर्ण थाय छे. बीजो भव:
दरेक भवनी शरूआतमां पूर्वभवनुं अनुसंधान अने जे भवनुं वर्णन करवानुं छे तेनो नामनिर्देश करती एक गाथा छे. आ बीजा भवनी शरूआतमां ते गाथा आ प्रमाणे
गुणसेण-अग्गिसम्मा, जे भणियमिहासि तं गयमियाणिं ।
सीहा-णन्दा य तहा, जं भणियं तं निशामेह ॥ जयपुर नगरमां पुरुषदत्त राजाने त्यां श्रीकांतानी कुक्षीए गुणसेननो जीव जन्मे छे ने सिंहना स्वप्न अनुसार तेनुं नाम सिंहकुमार राखवामा आवे छे. राजकुमारने योग्य विशिष्ट सर्व कलाकलाप शीखीने तैयार थाय छे. यौवन वयमां आव्या पछी एक दिवस उद्यानमा जाय छे. त्यां पोताना मामा लक्ष्मीकान्तनी पुत्री कुसुमावली क्रीडा करवा
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