Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
13
श्रुतसागर
नवम्बर-२०१४ चैत्योमा प्रत्येकमां एकसो चोवीस शाश्वत जिनप्रतिमाजी छे. तेथी बावन जिनचैत्योनी कुल प्रतिमा संख्या छ हजार चारसो अडतालीस थई, ईन्द्राणीनी राजधानीना चैत्योमां प्रत्येकमां एकसो वीस प्रतिमाजी छे तेथी सोळ राजधानीनी जिनप्रतिमा एक हजार नवसो वीस थई, मतांतर मुजब जिनप्रतिमानी संख्या त्रण हजार आठसो चालीस थई प्रस्तुत कृतिमा मात्र उपरोक्त बावन जिनालयोनी स्तवन-पूजा करवामां आवी छे.
__ आ सिवाय वावडीना नामो, सर्वे जिनचैत्योर्नु स्वरूप, तेना द्वारोनुं स्वरूप, जिनभवननी अंदर रहेल मणिपीठिका-प्रतिमा, परिकर, उपकरण विगेरेनुं विशद स्वरूप, प्राप्त थाय छे. परंतुं विस्तार भयथी अहीं जणाव्यु नथी, विशेष स्वरूप जाणवा माटे. नन्दीश्वरद्वीपस्तव, लोकप्रकाश, क्षेत्रसमासप्रकरण वगेरे ग्रंथोनुं अध्यपन करवू. ___मात्र नंदीश्वर द्वीपर्नु ज वर्णन होय तेवा स्तोलो,स्तुतिओ, स्तवनो, पूजाओनी प्राचीन-अर्वाचीन कृतिओनी कुल संख्या प्रायः ५० नी आसपास छे. जेनी नोंध कृतिना अंते अने आपेली छे. भिन्न-भिन्न कर्ताओनी बनावेली प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर, हिन्दी भाषानिबद्ध 'नंदीश्वरद्वीप पूजा करता प्रस्तुतकृति मात्र संस्कृत भाषामां रचायेली होय विशिष्ट छे. वळी अन्य पूजाओमां प्रायः एक साथे समग्न नंदीश्वरद्वीपना बधा ज जिनालयोनी अष्टप्रकारी पूजा होय छे. ज्यारे प्रस्तुत कृतिमां दरेक दिशानां जिनालयोनी अनुक्रमे अष्टप्रकारी पूजा करी छे. कृति एकंदरे मजानी छे. तेमां इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, अनुष्टुब, वसन्ततिलका प्रमुख गणमेळ छंद अने अन्य मात्रमेळ छंद कविए प्रयोज्या छे. क्यांक क्यांक तेमां स्खलना थई होय तेवू जणाय छे. कर्त्ता तरीके 'आ . श्री रत्नशेखर सूरिजी मनुं नाम कृतिमां प्राप्त थाय छे. तेओश्रीना जीवनसंबंधी, गुरुपरंपरा संबंधी कोई माहिति कृतिमां मळती नथी.
श्री सुरेन्द्रनगर जैन संघना ज्ञानभंडारमाथी प्रस्तुतकृति संपादन माटे मळी छे. ते माटे ते श्री संघना वहीवटकर्ताओनो खूब - खूब आभार प्रान्ते
"चत्वारोऽञ्जन शैलगा दधिमुखोत्तं सश्रियः षोडश, द्वात्रिंशच्च निदेशतो रतिकरेष्वेवं द्विपञ्चाशतम्। इन्द्राणीवरराजधान्युपगता द्वात्रिंशतोऽमूञ्चतु
र्युक्ताऽशीतिमहं जिनेन्द्रनिलयान् वन्दे च नन्दीश्वरे॥" नंदीश्वरद्वीपना ते शाश्वतजिनचैत्योमा बिराजमान सर्व शाश्वत जिनबंबोने भाव ' सभर वंदना
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84