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SHRUTSAGAR
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___NOVEMBER-2014 समजवो मुश्केल पडे छे तेथी कर्तानो आशय संपूर्णपणे स्पष्ट थतो नथी. तेथी आ पदो पर आध्यात्मिक दृष्टिए सरळ अने सुंदर अर्थसभर विशिष्ट शैलीमा विवेचन कर्यु छे. जेथी करीने जिज्ञासुओ तेनो लाभ लई शके. पू. मणिचन्द्रजीनी उत्तम कोटिनी रचनाओ अने तेना पर अर्थ-विवेचन करनार अध्यात्मरसिक कविराज श्रीमद बुद्धिसागरजी म. साहेब होय तो पूछकुंज शु?
प्रस्तुत ग्रंथमा प्रथम सज्झायमां भक्ति जे नव प्रकारे थाय छे तेनुं विवेचन गुरूदेवे सरळ भाषामां दरेकने समजाय ते रीते कर्यु छे. (१) श्रवण (२) कीर्तन (३) सेवन (४) वन्दन (५) निन्दा (६) ध्यान (७) लघुता (८) एकता अने (९) समता. श्रवण भक्तिने समजावतां कह्यु छ के आत्माना अनंत गुण पर्यायो- द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावथी गीतार्थ गुरु मुखथी स्वरूप श्रवण करवु ते श्रवण भक्ति छे. कारण के ते आत्मानी श्रवणभक्ति छे.
एथी श्रवणक्रिया भक्तिथी अनादिकालथी लागेला कर्मोनो उत्कृष्टभावे एक क्षणमां नाश पामे छे. आवी ज रीते नवे प्रकारनी भक्तिने सदृष्टांत संदररीते समजावे
चेतन जब तुं ज्ञान विचारे, तब पुद्गल की सविगति छारे । आपही आपस भावमें आवे, परपरिणति सत्य दुरे गमावे ॥
हे चेतन! ज्यारे तुं आत्मानुं ज्ञान विचारे छे त्यारे पुद्गलनी संगतिनो मोह वारे छे अने तुं पोताना आत्माना स्वभावमां आवे छे तथा राग द्वेषादिकनी परपरिणतिने दूर करी शके छे. आत्मानुं ज्ञान विचारवाथी अने आत्मानुं स्वरूप रमण करवाथी आत्मानी साथे मोहरूप शमतानो संबंध रहेतो नथी. मोरनी पासे सर्प रहेतो नथी. सिंहनी पासे ससलं रहेतुं नथी. प्रकाशनी पासे अंधकार रहे नहि तेम आत्मज्ञाननो विचार करवाथी परपरिणति प्रगटेली होय छे तो ते तुर्त शमी जाय छे.
धनरामाने कारणे ध्यातो, आरंभे करी होइ मातो रे। जनम गमाव्यो न जाण्यो जातो, फीरे करमे करी तातोरे ॥ज.९॥ पंच कारण योग्यता पावे, कम्मराशी तुटी जावे रे। मुगतियोग्यता चेतन थावे, भणे भणिचंद गुण गावे रे ॥ज.९॥
हे चेतन! तुं सुखने माटे धन प्राप्ति पाछळ आंधळी दोट मूके छे. ते माटे अहर्निश दुर्ध्यान धरे छे. धन मेळववा माटे अनेक छळकपट करवां पडे छे. तेथी मनुष्य जन्म
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