Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१४ ॐ ह्रीं [श्री] नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्यः पुष्पं यजामीति स्वाहा ॥३॥ उद्योतयामि पुरतः जिननायकस्य, दीपं तमःप्रशमनाय शमाम्बुराशेः। प्राचीदिशादधिमुखाद्रिचतुष्ककेऽहं, नन्दीश्वरे धुतमदस्य सदोदितस्य ॥४॥ ॐ ह्रीं श्री] नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्यो दीपं यजामीति स्वाहा ॥४॥ कृष्णागुरुप्रपचितं सितया समेतं, कर्पूरपूरसहित(त) विहितं च धूपम्। प्राचीदिशादधिमुखाद्रिचतुष्ककेऽहं, नन्दीश्वरे जिनसमीपमहं करोमि ॥५॥ ॐ ह्रीं [श्री] नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्यो धूपं यजामीति स्वाहा ॥५॥ ज्ञानं च दर्शनमथो चरणं विचिन्त्य, पूजात्रयं च पुरतः प्रविधाय भक्त्या। प्राचीदिशादधिमुखाद्रिचतुष्ककेऽहं, नन्दीश्वरेऽक्षतगणैः कुरु(यजे) स्वस्तिकं च ॥६॥ ॐ ह्रीं [श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्योऽक्षतं यजामीति स्वाहा ॥६॥ सन्नाभिकेर-पनसा-ऽऽमल-बीजपूरैः, [नानाविधैः सुमधुरैर्बहुभिः फलैश्च] । प्राचीदिशादधिमुखाद्रिचतुष्ककेऽहं, नन्दीश्वरे त्रिजगतीपतिमर्चयामि ॥७॥
ॐ ह्रीं [श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वदिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्यः(भ्यो) फलं यजामीति स्वाहा ॥७॥ सन्मोदकै-र्वटक-मण्डक-शालि-दालै(ल)-मुख्यैरसङ्ख्यरसशालिभिरन्न(न्य)भोज्यैः। प्राचीदिशादधिमुखाद्रिचतुष्ककेऽहं, नन्दीश्वरे त्रिजगतीपतिमर्चयामि ॥८॥ ॐ ह्रीं श्री] नन्दीश्वरद्वीपे पूर्व दिगाश्रितदधिमुखचतुष्के [श्री]
जिनबिम्बेभ्यो नैवेद्यं यजामीति स्वाहा ॥८॥ पयोधारा-त्राया-मलयजरसै-रक्षतचयैः, प्रसूनैनैवेद्यैः प्रमदभरितो(तै)दी(H)पनिकरैः। वरैधूपोद्गारैः फलचयकुशाठ्यै(ग्र्य)श्च रचितं, विदध्नो(यो)ऽघु नन्दीश्वरदधिमुखादौ जिनवरान् ॥९॥
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