Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 6 NOVEMBER-2014 लिए बिना मैं आगे नहीं बढूँगा। तुम आगे आओ। इन दोनों पाँवों की मैत्री क्या कभी आपने देखी ? कैसा प्रेम पूर्वक आमन्त्रण है! एक इंच भी पिछला पाँव आगे नहीं जाता। कभी साथ चलने का प्रयास नहीं करता । कभी इनमें यह दुर्भावना नहीं आती कि यह ही आगे क्यों बढ़ता है या मैं ही आगे आगे चलूँगा। हुआ है कभी ऐसा? एक पाँव आगे जाएगा दूसरा पाँव पीछे रहेगा । मैं तुम्हारे लिए सहयोग में, मैं तैयार हूँ। तुम आगे बढो । जो आगे बढेगा वह तुरंत रुक जाएगा। तुम को छोड़कर मैं आगे नही बढूँगा। तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारी सेवा में तैयार हूँ। जैसे पाँव आगे आएगा, पिछला रुक जाएगा। अगला रुका तो वह तुरंत कहेगा तेज आगे आओ। दोनों का प्रेम देखो! आपको यहाँ से घर तक पहुँचा देते हैं। घर, दुकान, मकान तक ले जाते हैं। इनमें अगर वैर हो जाए, कटुता आ जाए तो क्या आप यहाँ से जा सकेंगे? पाँव जितनी भी नम्रता आ जाए, सहयोग की भावना आ जाए तो भी हमारा कल्याण हो जाए। हमने न तो अपनी इन्द्रियों से कुछ सीखा । न अपनी शारीरिक रचनाओं में से कोई अध्यात्मिक चेतना या जागृति प्राप्त की । मात्र जगत् की चिन्ता में सारा जीवन बरबाद हो गया । सियार ने साधु की आज्ञा का पालन किया और कहा- मैं भले मर जाऊँ पर इसे न खाऊँगा। आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। ऐसे पापी आदमी की लाश का भक्षण मैं कभी नहीं करूँगा। यह कवि - कल्पना है, बड़ी सुन्दर कल्पना है । यह सारी कल्पना हमारे उपकार के लिए है। हमें जागृत करने के लिए है । उस महान आचार्य भगवन्त ने भी यह निर्देश इसीलिए दिया । 'सर्वत्र निन्दा संत्यागो' । जीभ का कितना घोर दुरुपयोग किया। आपने कभी सोचा । ढेर सारी मिठाई आप खा गए। जन्म से लेकर आज तक लड्डू पेडा कितना ही खा गए। क्या जीभ के अन्दर मिठास आई? आज तक नहीं आई खाते-खाते आनी चाहिए थी । आपकी वाणी को मीठा बन जाना चाहिए था । क्षमापना करते समय संवत्सरी के पारणे में मिठाई से क्षमापना करना कि मैंने तुम्हारा बहुत ही दुरुपयोग किया। आज के बाद कभी दुरुपयोग नहीं करूँगा । जन्म से आज तक तुम्हारा स्वाद लिया, तुम्हारा परिचय For Private and Personal Use Only

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