Book Title: Shrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्य पद्मसागरसूरि ‘पादौ न तीर्थगतौ' 'इन पाँवों से कभी तीर्थ यात्रा इसने नहीं की। कभी सत्पुरुषों की सेवा में इन पाँवों का प्रयोग नहीं किया। कभी कोई धर्म प्रवचन में या धर्म यात्रा में ये पाँव नहीं गये। इसलिए इसे तू पूरा का पूरा ही छोड़ दे। भूखे मरना, तेरे लिए भले ही पुण्य न बने परन्तु इसका भक्षण करना, पाप अवश्य बन जाएगा।' कितना भयंकर दुरुपयोग हमने अपने पावों का किया है। न जाने दिन में गर्मी में कहाँ पाँव दौडे। पैसे के लिए उस भयंकर गर्मी में भी हम दौडते रहे। परन्तु परमात्मा के दर्शन के लिए या साधु सन्तों के दर्शन के लिए कभी अपने पुण्य पुरुषों की सेवा के लिए हमने आज तक पाँवों का प्रयोग नहीं किया तो फिर ये किस काम आए? हमने अपनी इन्द्रियों का आज तक उपयोग केवल पाप के आगमन के लिए किया है। इन्हें पाप का प्रवेशद्वार बना कर रखा है। पाप के उपार्जन में सारी इन्द्रियाँ माध्यम बन गईं : जबकि इसका उपयोग धर्म का साधन बनने के लिए थे। किन्तु यह उपयोग धर्म साधना के क्षेत्र में आज तक नहीं किया गया। मोक्ष प्राप्ति का जो साधन था। वह साधन संसार उपार्जन में निमित्त बना। यह बहुत विचारणीय प्रश्न है। पाँव को यदि आपने देख लिया होता, समझ लेते पाँव ही की भाषा से उसके भावों को यदि यह जान लेते, बहत कुछ पा जाते। पाँव की भी एक भाषा है। आज तक इस भाषा को हम समझ नहीं पाए। आपने कभी पांव की नम्रता देखी? इस पाँव की साधुता को देखा? कभी इसने असहयोग भाव से जीवन में अशान्ति उत्पन्न की? कभी हड़ताल की? आपकी आज्ञा का यथावत् पालन किया। यदि पाँव जितनी अकल भी हमारे अंदर आ जाए, तो ये सारी यात्रा मोक्ष की ओर, परमेश्वर की यात्रा बन जाए। पाँव जितनी भी बुद्धिमानी हमारे पास में नहीं। आप देखना, जब हम चलते हैं, एक पाँव आगे जाता है दूसरा पीछे रहता है। वह कहता है, भई! तुम आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे हूँ, तुम्हारे सहयोग में उपस्थित हूँ। तुम्हारे सहयोग में तैयार हूँ। तुम आगे बढ़ो, जैसे ही वह पाँव आगे बढ़ता है, रुक जाता है। मानो कहता है तुम्हें For Private and Personal Use Only

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