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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका
I
वैशेषिको के मतानुसार बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, धर्म, अधर्म, प्रयत्न और भावना संस्कार और द्वेष ये नौ आत्मा के विशेष गुणो के उच्छेद को मोक्ष कहा जाता हैं ।(19)
मीमांसक दर्शन में श्री कुमारिल भट्ट और श्री प्रभाकर मिश्र नाम के आचार्यों का मत प्रचलित हैं । श्री कुमारिल भट्ट के मतानुसार दुःख का आत्यन्तिक समुच्छेद होने से आत्मा में जो पहले से आनंद विद्यमान था, उस आनंद की मन द्वारा अनुभूति होती है, उसे ही मोक्ष कहा जाता है ।(20) अर्थात् नित्य सुख का साक्षात्कार जहाँ होता हैं, उसे मोक्ष कहा जाता हैं। श्री प्रभाकर मिश्र के मतानुसार सभी बुद्धि आदि विशेष गुणो का नाश होने से आत्मा का स्वरूप में जो अवस्थान होता हैं, उसे ही मोक्ष कहा जाता हैं ।(21)
मीमांसादर्शन के दो विभाग हैं । एक पूर्वमीमांसा और दूसरा उत्तरमीमांसा । वर्तमान में पूर्वमीमांसा दर्शन मीमांसक दर्शन के नाम से और उत्तर मीमांसा दर्शन वेदांत दर्शन के नाम से पहचाना जाता हैं । मीमांसक दर्शन के आचार्यो की मोक्ष विषयक मान्यतायें उपर देखी हैं। वेदांत दर्शन में भी अनेक आचार्यो की मोक्ष विषयक मान्यतायें भिन्न-भिन्न प्रवर्तित हैं।
• अद्वैत वेदांत (केवलाद्वैत) वेदांत के पुरस्कर्ता श्री शंकराचार्य के मतानुसार प्रपंच का नाश होना वही मोक्ष हैं ।(22) (प्रपंच का विलय होने से) शोक की निवृत्ति और आनंदात्मक ब्रह्म की प्राप्ति होना उसे मोक्ष कहा जाता हैं ।(23)
श्री शंकराचार्य के मतानुसार (देहादि से) विपरीत आत्मा के स्वरूप का प्रकाश होना वही मुक्ति कही जाती हैं। यह मुक्ति सदा समाधि में रहनेवाले मनुष्य को ही सिद्ध होती है, अन्य प्रकार से सिद्ध नहीं होती हैं ।(24) अद्वैत वेदांत की मुक्ति विषयक अन्य मान्यतायें परिशिष्ट विभाग में वेदांत दर्शन के “मोक्ष विचार" लेख में से जान लेना । श्री शंकराचार्य के मतानुसार मोक्ष आनंद स्वरूप ही हैं । अद्वैत वेदांत को ही पुरस्कृत करते अन्य आचार्यो के मुक्ति विषयक मत भी उसी लेख में संगृहित किये हुए हैं।
- विशिष्टाद्वैत के पुरस्कर्ता श्री रामानुजाचार्य के मतानुसार “सर्वकर्तृत्व" इस गुण को छोडकर वासुदेव के सर्वज्ञत्वादि कल्याण गुणो की प्राप्ति होने से जो भगवान के जैसा ही अनुभव होता हैं, उसे मोक्ष कहा जाता हैं ।(25)
- द्वैत सिद्धांत के पुरस्कर्ता श्री माध्वाचार्य के मतानुसार जगत्कर्तृत्व, लक्ष्मीपतित्व और श्री वत्स को छोडकर भगवान के ज्ञान के आधीन जो दुःख का अभाव और पूर्ण सुख है, उसकी प्राप्ति होना उसे मोक्ष कहा जाता हैं ।(26) अर्थात् उन तीन गुण के सिवा सर्वज्ञत्वादि के सद्भाव में जो दुःख के अंश रहित पूर्ण सुख की प्राप्ति हो, उसे मोक्ष कहा जाता है।
19.बुद्धिसुखदुःखेच्छाधर्माधर्मप्रयत्नभावनाख्यसंस्कारद्वेषाणां नवानामात्मविशेषगुणानामुच्छेदो मोक्षः । (षड़ समु. ६७ टीका)
20. (१) दुःखात्यन्तसमुच्छेदे सति प्रागात्मवर्तिनः । सुखस्य मनसा भुक्तिर्मुक्तिरूक्ता कुमारिलैः ।।२५ ।। इति भाट्टाः (मानमेयोदयः) (२) नित्यसुखसाक्षात्कार इति भाट्टाः (सर्वलक्षणसंग्रहः) 21. (१) सकलबुद्धयादिविशेषगुणविलये सत्यात्मनः स्वरूपावस्थानं मोक्ष इति प्राभाकराः (मानमेयोदयः) (२) आत्यन्तिकदुःखप्रागभावपरिपालनमिति प्राभाकरा: (सर्वलक्षणसंग्रहः) 22. प्रपञ्चविलयो मोक्ष इति शाङ्कराः । (मानमेयोदय:) 23. आनन्दात्मक-ब्रह्मावाप्राप्तिश्च मोक्षः शोकनिवृत्तिश्च (वेदांत परिभाषा) 24. विपरीतात्मतास्फुतिरेव मुक्तिरितीर्यते । सदा समाहितस्यैव सैषा सिद्धयति नान्यथा ।। सर्ववेदांतसिद्धांसारसंग्रह-८४४।। 25. सर्वकर्तृत्वमेकं विहाय वासुदेवस्य सर्वज्ञत्वादीनां कल्याण-गुणानामाप्तिमत्त्वे सति भगवद्याथात्म्यानुभव इति रामानुजीयाः (सर्वलक्षणसंग्रहः) 26. जगत्कर्तृत्व, लक्ष्मीपतित्व, श्रीवत्सवर्ज भगवदज्ञानायत्तनिर्दुःखपूर्णसुखमिति माध्वाः (सर्वलक्षणसंग्रहः)
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