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श्रमण और वैदिक परम्परा का पौर्वापर्य नाम है । वहां लिखा है-“जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं, उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम हैं। कोई उन्हें तथागत कहते हैं तो
कोई उन्हें स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, विष्णु, ईश्वर, प्रधान, कपिल, भूतानत, भ्राष्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक, इन्द्र, बलि, वरुण आदि नामों से पुकारते हैं।
प्रभासपुराण में अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण का सम्बन्धित उल्लेख है। अरिष्टनेमि का रेवत (गिरनार) पर्वत से भी सम्बन्ध बताया गया है और वहां उल्लिखित है कि वामन ने नेमिनाथ को शिव के नाम से पुकारा था। वामन ने गिरनार पर बलि को बांधने का सामर्थ्य पाने के लिए भगवान नेमिनाथ के आगे तप तपा था।
इन उद्धरणों से श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि के पारिवारिक तथा धार्मिक सम्बन्ध की पुष्टि होती है। उत्तराध्ययन के बाईसवें अध्ययन से भी यही प्रमाणित होता है।'
__ प्रोफेसर प्राणनाथ ने प्रभास पाटण से प्राप्त ताम्रपत्र को इस प्रकार पढ़ा है-रेवा नगर के राज्य के स्वामि सु-जाति के देव नेबुशर नेजर आए हैं। वह वदुराज के स्थान (द्वारिका) आए हैं। उन्होंने मंदिर बनवाया है। सूर्य-देवनेमि कि जो स्वर्ग समान रेवत पर्वत के देव हैं (उन्हें) सदैव के लिए अर्पण किया।'
बावल के सम्राटों में नेवुशर और नेजर नामक दो सम्राट् हुए हैं। पहले का समय ई० सन् से लगभग दो हजार वर्ष पहले है और दूसरे ई० सन् पूर्व छठी या ७ शती में हुए हैं। इन दोनों में से एक ने द्वारिका आकर रेवत (गिरनार) पर्वत पर भगवान् नेमिनाथ का मन्दिर बनवाया था। - इस प्रकार साहित्य व ताम्रपत्र-लेख–दोनों से अरिष्टनेमि का अस्तित्व प्रमाणित होता है।
१. बौद्ध धर्म-दर्शन, पृ० १६२ । २. विशेष जानकारी के लिए देखें-- "अर्हत् अरिष्टनेमि और वासुदेव कृष्ण,'
लेख क--श्रीचन्द रामपुरिया । ३. गुजराती 'जैन', भाग ३५, पृ० २ । ४. संक्षिप्त जैन इतिहास, भाग १, पृ० ६ ।
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