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संस्कृति के दो प्रवाह
नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः' (ऋग्वेद, १११४१८६६) में अरिष्टनेमि शब्द भगवान अरिष्टनेमि का वाचक होना चाहिए। महाभारत में 'तार्क्ष्य' शब्द अरिष्टनेमि के पर्यायवाची नाम के रूप में प्रयुक्त हुआ है ।' तार्क्ष्य अरिष्टनेमि ने राजा सगर को जो मोक्ष विषयक उपदेश दिया उसकी तुलना जैन धर्म के मोक्ष सम्बन्धी सिद्धांतों से होती है। वह उपदेश इस प्रकार है :
_ 'सगर ! संसार में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, परन्तु जो धन-धान्य के उपार्जन में व्यग्र तथा पुत्र और पशुओं में आसक्त है, उस मूढ़ मनुष्य को उसका यथार्थज्ञान नहीं होता। जिसकी बुद्धि विषयों में आसक्त है, जिसका मन अशान्त रहता है, ऐसे मनुष्य की चिकित्सा करनी कठिन है, क्योंकि जो स्नेह के बंधन में बंधा हुआ है, वह मूढ़ मोक्ष पाने के लिए योग्य नहीं होता।
इस समूचे अध्याय में संसार की असारता, मोक्ष की महत्ता, उसके लिए प्रयत्नशील होने और मुक्त के स्वरूप का निरूपण है। सगर के काल में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे, इसलिए यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता। यहां 'तार्क्ष्य अरिष्टनेमि' का प्रयोग भगवान् अरिष्टनेमि के लिए ही होना चाहिए।
लगता है कि ऋग्वेद के व्याख्याकारों ने उसका अर्थ-परिवर्तन किया है। अरिष्टनेमि विशेषण ही नहीं है। प्राचीन काल में यह नाम होता था। महाभारत में मरीचि के पुत्र के दो नाम बतलाए गए हैं-अरिष्टनेमि और कश्यप । कुछ लोग उसे अरिष्टनेमि कहते और कुछ लोग कश्यप ।'
ऋग्वेद में भी तार्क्ष्य अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। अरिष्टनेमि का नाम महावीर और बुद्ध-काल में महापुरुषों की सूची में प्रचलित था। लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नामों में अरिष्टनेमि का भी १. महाभारत, शान्तिपर्व, २८८।४ :
एवमुक्तस्तदा तायः, सर्वशास्त्रविदां वरः । विबुध्य सम्पदं चाग्र्यां, सद्वाक्यमिदमब्रवीत् ।। २. महाभारत, शान्तिपर्व, २८८।५,६ । ३. महाभारत, शान्तिपर्व, २०८१८ : मरीचेः कश्यपः पुत्रस्तस्य द्वे नामनी स्मृते ।
अरिष्टनेमिरित्येके, कश्यपेत्यपरे विदुः ॥ ४. ऋग्वेद, १०।१२।१७८।१ : त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम् । अरिष्टनेमि पृतनाजमाशुं स्वस्तये ता_मिहा हुवेम ।।
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