Book Title: Sanskruti ke Do Pravah
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ संस्कृति के दो प्रवाह थे। कपिलवस्तु में भी पाश्वं का धर्म फैला हुआ था । वहां न्यग्रोधाराम में शाक्य निर्ग्रन्थ श्रावक 'वप्प' के साथ बुद्ध का संवाद हुआ था। भगवान् महावीर से पूर्व जैन धर्म के सिद्धांत स्थिर हो चुके थे। डा० चाल सरपेंटियर ने लिखा है- हमें इन दो बातों का भी स्मरण रखना चाहिए कि जैन धर्म निश्चितरूपेण महावीर से प्राचीन है; उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्श्व प्रायः निश्चितरूपेण एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं एवं परिणाम स्वरूप मूल सिद्धान्तों की मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्ररूप धारण कर चुकी होंगी।' __ गौतम बुद्ध और वर्द्धमान महावीर से पूर्ववर्ती पुरुष के रूप में पार्श्व का उल्लेख करते हुए बताया गया है.---'नातपुस (श्री महावीर वर्द्धमान) के पूर्वगामी उन्हीं की मान्यता वाले अनेक तीर्थङ्करों में उनका (जैनों का) विश्वास है और इनमें से अंतिम पार्श्व या पार्श्वनाथ के प्रति वे विशेष श्रद्धा व्यक्त करते हैं । उनकी यह मान्यता ठीक भी है क्योंकि अंतिम व्यक्ति पौराणिक से अधिक है । गौतम के समय में पार्श्व द्वारा स्थापित 'निग्गन्थ' नाम से प्रसिद्ध धार्मिक संघ एक पूर्व संस्थापित सम्प्रदाय था और बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उसने बौद्ध धर्म के उत्थान में अनेक बाधाएं डालीं।" १. आयारचूला, १५।२५ । २. अंगुत्तर निकाय, चतुष्कनिपात, महावग्ग वप्पसुत्त, भाग २, पृ० २१०-२१३ । 3. The Uttarădhyayana Sūtra, Introduction p. 21 : “We ought also to remember both that the Jain religion is certainly older than Mahāvīra, his reputed predecessor Pārsva having almost certainly existed as a real person, and that, consequently, the main points of the original doctrine may have been codified long before Mahāvira." 4. Harmsworth, History of the world, Vol. II, p. 1198 : “They, thu Jain as believe in a great number of prophets of their faith anterior of Nätaputta (Mahävira Vardhmäna) and pay special reverence to the last of these, Pārswa or PārswaNatha. Herein they are correct, in so far as the latter personality is more than mythical. ... ... ...As early as the time of Gotama, the religious confraternity founded by Pārswa, and known as the Nirgrantha, was a formally established sect, and according to the Buddhist chronicles, threw numerous difficulties in the way of the rising Buddhism". Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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