Book Title: Sanskruti ke Do Pravah
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ श्रमण और वैदिक परम्परा का पौर्वापर्य बोद्ध धर्म की शाखा है।' डा० हर्मन जेकोबी ने इन दोनों मान्यताओं का खण्डन कर यह प्रमाणित किया कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से स्वतंत्र ही नहीं, किन्तु उससे बहुत प्राचीन है। भगवान् पावं डा० हर्मन जेकोबी ने भगवान् पार्श्व को ऐतिहासिक व्यक्ति प्रमाणित किया। फिर इस विषय की पुष्टि अनेक विद्वानों ने की। डा० बासम का अभिमत है : 'भगवान् महावीर बौद्ध-पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किए गए हैं इसलिए उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। भगवान् पार्श्व चौबीस तीर्थङ्करों में से तेईसवें तीर्थङ्कर के रूप में प्रख्यात डा. विमलाचरण ला के अनुसार भगवान् पार्श्व के धर्म का प्रचार भारत के उत्तरवर्ती क्षत्रियों में था। वैशाली उसका मुख्य केन्द्र था। वृज्जिगण के प्रमुख महाराज चेटक भगवान पार्श्व के अनुयायी थे। भगवान महावीर के माता-पिता भी भगवान् पाव के धर्म का पालन करते 1. Indische Studien, XVI, p. 210. 2. The Sacred Books of the East, Vol. XXII, Introduction pp. 18-22. 3. The Sacred Books of the East, Vol. XLV, Introduction p. 21 : “That Pārsva was a historical person, is now admitted by all as very probable ;...” 4. The Wonder That Was India (A. L. Basham, B.A., Ph. D., F.R.A.S), Reprinted 1956, pp. 287-88. “As he (Vardhamāna Mahāvīra) is referred to in the Buddhist scriptures as one of the Buddha's chief opponents, his historicity is beyond doubt. ......Parswa was remembered as the twenty-third of the twenty-four great teachers Or Tirthan karas "ford-makers" of the Jaina faith.'' . 5. Kshatriya clans in Buddhist India, p. 82. ६. उपदेशमाला, श्लोक ६२ : वेसालीए पुरीए सिरिपासजिणेससासणसणाहो । हेहयकुलसभूओ चेडगनामा निवो आसि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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