Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
शुद्धोपयोग का फल-अतीन्द्रिय महान सुख - [वही प्रशंसनीय है; राग का फल प्रशंसनीय नहीं] -
आचार्य भगवान ने प्रवचनसार में पंच परमेष्ठी को नमस्कार करके मोक्ष का स्वयंवर-मंडप रचा है.... अहा! हम पंच परमेष्ठी में मिलकर मोक्षलक्ष्मी को साधने निकले हैं, उसका यह मङ्गलउत्सव है।
मोक्ष का साधन क्या? कि शुद्धोपयोगरूप वीतरागचारित्र ही मोक्ष का साधन है; और बीच में भूमिकानुसार आया हुआ शुभराग तो बन्ध का कारण है, इसलिए वह हेय है। इस प्रकार शुभराग को छोड़कर, शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्ग को आचार्यदेव ने अंगीकार किया है... स्वयं शुद्धोपयोगी चारित्रदशारूप परिणमन किया है। ___ इस प्रकार शुभ-अशुभपरिणति को छोड़कर और शुद्धोपयोग परिणति को आत्मसात करके आचार्यदेव, शुद्धोपयोग अधिकार प्रारम्भ करते हैं; स्वयं तद्रूप परिणमन करके उसका कथन करते हैं । उसमें प्रथम, शुद्धोपयोग के प्रोत्साहन के लिए उसके फल की प्रशंसा करते हैं। अहो, शुद्धोपयोग जिनको प्रसिद्ध है-ऐसे केवली भगवन्तों को आत्मा में से उत्पन्न अतीन्द्रिय परम सुख है। सर्व सुखों में उत्कृष्ट सुख केवलियों को है; वह सुख रागरहित है, इन्द्रियविषयों से रहित है, अनुपम है और अविनाशी एवं अविच्छिन्न है। संसार के किन्हीं विषयों में ऐसा सुख नहीं।
अहो! ऐसा अपूर्व आत्मिकसुख परम अद्भुत आह्लादरूप है, जीवों ने पूर्वकाल में कभी उसका अनुभव नहीं किया है। सम्यग्दर्शन में ऐसे अपूर्व सुख के स्वाद का अंश आ जाता है,
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