Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-5
गिना जाता है; उसी प्रकार राग और शरीर की क्रिया, वह खोटा सिक्का है, उसमें चैतन्य की मुद्रा नहीं है; उस खोटे सिक्के द्वारा कोई सम्यग्दर्शनादि धर्म प्राप्त करना चाहे तो वह जैनशासन में गुनहगार है ।
★ जो वस्तु लेनी हो, उसकी सच्ची कीमत जाननी चाहिए । आत्मा को प्राप्त करने के इच्छुक जीव को आत्मा का सच्चा स्वरूप जानकर उसकी कीमत आँकना चाहिए और उससे विरुद्ध भावों को आत्मा में नहीं घुसाना चाहिए - ऐसा करने से आत्मवस्तु प्राप्त होती है, अर्थात् आनन्दसहित अनुभव में आती है। •
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वह उत्साहपूर्वक उसका सेवन करता है
जिस प्रकार थके हुए व्यक्ति को विश्राम मिलने पर अथवा वाहन आदि की सुविधा मिलने पर वह हर्षित होता है और रोग से पीड़ित मनुष्य को वैद्य मिलने पर वह उत्साहित होता है; इसी प्रकार भव-भ्रमण कर करके थके हुए और आत्मभ्रान्ति के रोग से पीड़ित जीव को थकान उतारनेवाली और रोग मिटानेवाली चैतन्यस्वरूप की बात कान में पड़ते ही, वह उत्साहपूर्वक उसका सेवन करता है। सच्चे सद्गुरु वैद्य ने जिस प्रकार कहा हो, उस प्रकार वह चैतन्य का सेवन करता है । सन्त के समीप दीन होकर भिखारी की तरह 'आत्मा' माँगता है कि प्रभु! मुझे आत्मा का स्वरूप समझाओ।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.