Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-5
हुआ, तब शास्त्र-पठन या संयम न हो तो भी मोक्षमार्ग शुरु हो जाता है। श्रीमद् राजचन्द्र कहते हैं कि
अनन्त काल से जो ज्ञान भवहेतु होता था, उस ज्ञान को क्षणमात्र में जात्यांतर करके जिसने भवनिवत्तिरूप किया, उस कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन को नमस्कार।
-ऐसे सम्यग्दर्शन का सच्चा स्वरूप, जीव अनन्त काल से समझा नहीं और विकार को ही आत्मा मानकर, उसी के अनुभव में रुक गया है। बहुत तो पाप छोड़कर शुभराग में आया परन्तु शुभराग भी अभूतार्थ धर्म है; वह कहीं मोक्ष का कारण नहीं है और उसके अनुभव से कहीं सम्यग्दर्शन नहीं होता। भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी सभी तत्त्वों का सच्चा निर्णय सम्यग्दर्शन में समाहित है। चैतन्यप्रकाशी सूर्य आत्मा है, उसकी किरणों में रागादि अन्धकार नहीं है; शुभाशुभराग, वह ज्ञान का स्वरूप नहीं। ऐसे रागरहित ज्ञानस्वभाव को जानकर उसकी प्रतीति और अनुभूति करना, वह अपूर्व सम्यग्दर्शन है, वह सर्व का सार है।
परमात्मप्रकाश में कहते हैं कि अनन्त काल से संसार में भटकता हुआ जीव दो वस्तुओं को प्राप्त नहीं हुआ-एक तो जिनवरस्वामी, और दूसरा सम्यक्त्व। बाहर में तो जिनवरस्वामी मिले परन्तु स्वयं उनका सच्चा स्वरूप नहीं पहिचाना; इसलिए उसे जिनवरस्वामी मिले नहीं-ऐसा कहा। जिनवर का स्वरूप पहिचानने से सम्यग्दर्शन होता ही है। सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञानचारित्र को भगवान के मार्ग की अर्थात् सच्चाई की छाप नहीं मिलती। सम्यग्दर्शन द्वारा शुद्धात्मा को श्रद्धा में लिया, तब ज्ञान
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