Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-5
तथापि सम्यक्त्व का ऐसा प्रभाव है कि सातवें नरक की आयु बँध गयी हो तो उसकी स्थिति - रस एकदम घटकर पहले नरक के योग्य हो जाती है; तिर्यंच या मनुष्य की हल्की आयु बँध गयी हो तो सम्यक्त्व के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि में ही मनुष्य या तिर्यंच होता है; व्यंतर इत्यादि हल्के देव की आयु बँध गयी हो तो उसके बदले सम्यक्त्व के प्रभाव से कल्पवासी देवों में ही जाता है तथा सम्यग्दृष्टि नीच कुल में या दरिद्रता में उत्पन्न नहीं होता, अत्यन्त अल्प आयु का धारक नहीं होता, विकृत अंगवाला या लूला, गूँगा, बहरा, अंधा भी उत्पन्न नहीं होता । यद्यपि यह सब बाहर का पुण्यफल है; सम्यग्दर्शन की अनुभूति तो इन सबसे अत्यन्त भिन्न ही है । देवादि के उत्तम शरीर से भी सम्यग्दृष्टि अपने को अत्यन्त भिन्न ही अनुभव करता है परन्तु सम्यक्त्व के साथ पुण्य का ऐसा सुमेल होता है - ऐसा बताना है। बाकी तो सम्यग्दृष्टि अपने को राग से भी भिन्न अनुभव करता है, वहाँ इस पुण्य की और संयोग की क्या बात !
देवों में तो नपुंसक होते ही नहीं; मनुष्य या तिर्यंच में नपुंसक हों, उनमें सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होता। जो सम्यग्दृष्टि पहले नरक में उत्पन्न होता है, उसे नपुंसकपना हो वह अलग बात है, क्योंकि नरक में तो सबको एक नपुंसकवेद ही होता है, वहाँ स्त्रीवेद या पुरुषवेद होता ही नहीं। कौन सा जीव कहाँ उत्पन्न होता है और कहाँ नहीं उत्पन्न होता ? - इसका विस्तार से वर्णन षट्खण्डागम इत्यादि सिद्धान्तसूत्रों में है ।
देखो! चार गति है, उसके योग्य जीव के भाव हैं, जीव को एक गति में से दूसरी गति में पुनर्जन्म अपने भाव - अनुसार होता
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