Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 194
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [179 आगामी चौबीसी में पहले तीर्थंकर होंगे। उनके गर्भागमन के छह महीने पहले यहाँ इन्द्र-इन्द्राणी उनके माता-पिता की सेवा करने आयेंगे और रत्नवृष्टि करेंगे। वे तो अभी नरक में होंगे। पश्चात् माता के गर्भ में आयेंगे, तब भी सम्यग्दर्शन और आत्मज्ञानसहित होगें तथा अवधिज्ञान भी होगा। मैं देह नहीं, मैं नारकी नहीं, मैं दु:ख नहीं; इस देह के छेदनभेदन से मेरा आत्मा छिदता-भिदता नहीं; मैं तो चैतन्य सुख का अखण्ड शाश्वत् पिण्ड हूँ-ऐसी आत्मश्रद्धा उन्हें नरक में भी सदा वर्तती है, और वह मोक्षमहल की सीढ़ी है। नरक में होने पर भी सम्यग्दर्शन के प्रताप से वह आत्मा, मोक्ष के मार्ग में ही परिणमित हो रहा है। अहो! सम्यग्दर्शन की कोई अचिन्त्य अद्भुत महिमा है। ऐसे सम्यग्दर्शन को पहिचानकर, हे जीवों! तुम अपने में उसकी आराधना करो। रे जीव! दुनिया, दुनिया में रही; तू तेरा आत्मभान करके तेरे हित को साध ले। सम्यग्दर्शन क्या है?-इसकी दुनिया को खबर नहीं है। सम्यग्दर्शन दूसरों को इन्द्रियज्ञान से दिखायी दे, वैसा नहीं है। अहा ! सम्यग्दर्शन हुआ, वहाँ आत्मा में मोक्ष का सिक्का लग गया है और परमसुख का निधान खुल गया। उसका तो जो अनुभव करे, उसे वास्तविक पता लगे। कोई मूर्ख हाथ में आये हुए चिन्तामणि को समुद्र में फेंक दे तो फिर से वह हाथ में आना जैसे कठिन है; वैसे चिन्तामणि जैसा यह मनुष्य अवतार, यदि सम्यग्दर्शन बिना गँवा दिया तो भव के समुद्र में फिर से उसकी प्राप्ति होना बहुत कठिन है; इसलिए इस दुर्लभ अवसर में अन्य सब पंचायत छोड़कर Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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