Book Title: Samyag Darshan Part 05
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 196
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-5] [181 की सफलता और जीव की शोभा है। ऐसा अच्छा योग बारम्बार नहीं मिलता, इसलिए इसमें सम्यग्दर्शन अवश्य प्रगट करो । अन्त में फिर से कहते हैं कि हे जीव ! आत्मा को समझकर श्रद्धा करने का यह अवसर आया है । इसे सम्हाल लेना। भाई! आत्मा का स्वरूप समझकर हित करने जितना उघाड़ तुझे हुआ है, तो उस उघाड़ को पर में (संसार के कार्यों में) व्यर्थ न गँवा; उसे आत्मा में लगा। उपयोग को अन्तर्मुख करके वीतराग - विज्ञान प्रगट कर । तेरी बुद्धि को आत्मा में जोड़कर सम्यग्दर्शन प्रगट कर । तू स्वयं शुद्ध चैतन्यमूर्ति है, दूसरा तुझे क्या कहें ? चेत! चेत! चेत! रे आत्मा ! तेरे जीवन में उत्कृष्ट वैराग्य के जो प्रसङ्ग बने हों और वैराग्य की सितार जब झनझना उठी हो... ऐसे प्रसङ्ग की वैराग्यधारा को भलीभाँति बनाये रखना, बारम्बार उसकी भावना करना । कोई महान प्रतिकूलता, अपयश इत्यादि उपद्रव-प्रसङ्ग में जागृत हुई वैराग्यभावना को याद रखना । अनुकूलता में वैराग्य को भूल मत जाना । और कल्याणक के प्रसङ्गों को, तीर्थयात्रा इत्यादि प्रसङ्गों को, धर्मात्मा के सङ्ग में हुई धर्मचर्चा इत्यादि कोई अद्भुत प्रसङ्गों को, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय सम्बन्धी जागृत हुई किन्हीं ऊर्मियों को तथा तेरे प्रयत्न के समय धर्मात्मा के भावों को याद करके बारम्बार तेरे आत्मा को धर्म की आराधना में उत्साहित करना । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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